लेखाशास्त्र या लेखाकर्म (Accountancy) | लेखांकन (Accounting) | अर्थ, परिभाषा, मूल तत्त्व

Sharing is caring!

लेखाकर्म-Accountancy-लेखांकन-Accounting
लेखाकर्म (Accountancy) | लेखांकन (Accounting)

लेखाकर्म तथा लेखांकन का उदय

आधुनिक काल में व्यवसाय का क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत हो गया है। श्रम, विशिष्टीकरण तथा वैज्ञानिक प्रबन्ध के कारण उत्पादन तथा विक्रय बड़े पैमाने पर होने लगे हैं। आजकल विभिन्न उत्पादों (products) के ग्राहक देश-विदेश में फैले हुए है। वर्तमान समय में विक्रेता विक्री बढ़ाने के लिए नकद के साथ-साथ उधार (credit) पर भी माल बेचते हैं। अतः उत्पादन तथा व्यापार सम्बन्धी क्रियाओं के विकास तथा विस्तार के कारण व्यावसायिक लेन-देनों को विधिवत् तथा वैज्ञानिक ढंग से लिखने की आवश्यकता पड़ी। तत्पश्चात् व्यावसायिक संख्या को 

वित्तीय स्थिति, लाभ-हानि, सम्पत्तियों व दायित्व आदि ज्ञात करने के लिए लेखा पुस्तकों के विश्लेषण की आवश्यकता अनुभव की गई। परिणामतः पुस्तपालन का कार्य व्यावसायिक लेन-देनो के लिखने तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि इसे पुस्तपालन (Book-keeping), लेखांकन (Accounting) तथा लेखाकर्म (Accountancy) में विभक्त कर दिया गया। 

वर्तमान में पुस्तपालन तथा लेखाकर्म दोनों के निश्चित नियम तथा सिद्धान्त है। गत वर्षों में लेखाकर्म की अवधारणा (concept) मे क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए है।

साधारणतया पुस्तपालन, लेखाकर्म तथा लेखांकन (Accounting) की अवधारणाओं (concepts) का प्रयोग पर्यावाची शब्दों के रूप में किया जाता है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इन तीनों अवधारणाओं के अर्थ में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इनके अन्तर को जानने के लिए तीनो अवधारणाओं का विस्तृत अध्ययन आवश्यक है।

लेखाशास्त्र या लेखाकर्म (Accountancy)

लेखाकर्म का अर्थ

साधारण व्यक्ति तो बहीखाता तथा लेखाकर्म दोनों का एक ही अर्थ समझता है, किन्तु वाणिज्यशास्त्र में इन शब्दों का प्रयोग भिन्न भिन्न अर्थों में किया जाता है। वास्तविकता तो यह है कि जहाँ बहीखाता का कार्य समाप्त होता है वहाँ लेखाकर्म का कार्य प्रारम्भ होता है। 

बहीखाता का कार्य तो व्यावसायिक व्यवहारों तथा सौदों का हिसाब किताब की पुस्तकों में नियमानुसार लिखना, खाते बनाना तथा उनके योग व शेष ज्ञात करना है। तत्पश्चात् लेखाकर्म का कार्य जर्नल व खातों की जाँच करना है जिसके लिए तलपट बनाना और उसकी सहायता से पुस्तकों में उपलब्ध आँकड़ों व सूचनाओं के आधार पर व्यवसाय की आर्थिक व वित्तीय स्थिति ज्ञात करके लाभ-हानि खाता तथा आर्थिक चिट्ठा तैयार करना होता है।

जबकि बाहीखाते का कार्य व्यावसायिक व्यवहारों को पुस्तकों में क्रमबद्ध तथा नियमबद्ध ढंग से लिखना है, तब लेखाकर्म का कार्य आँकड़ों व सूचनाओं का विश्लेषण करके वित्तीय स्थिति ज्ञात करना तथा नीति-निर्धारण हेतु आधार तैयार करना है।

लेखाकर्म के अन्तर्गत मुख्यतया इन कार्यों का समावेश किया जाता है- 

  • वित्तीय स्वभाव के व्यावसायिक सौदों (लेन-देनों) तथा घटनाओं के मौद्रिक रूप का लेखा करना (Recording). 
  • लेन-देनो का वर्गीकरण (Classification) करना
  • सारांश तैयार करना (Summarising) अर्थात् लाभ-हानि खाता एवं आर्थिक चिट्ठा बनाना
  • परिणामो की व्याख्या करना (Interpretation of Results)। 

वस्तुत: लेखाकर्म में पुस्तपालन (बहीखाता) से आगे का कार्य शामिल होता है।

लेखाकर्म विज्ञान एवं कला है जिसमे पुस्तपालन के अन्तर्गत तैयार किए गए अभिलेखों को पुनः क्रमबद्ध किया जाता है, उन पर आधारित विवरण तैयार किए जाते हैं तथा उनके व्यवसाय पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या की जाती है। 

लेखाकर्म की विषय-सामग्री (Subject Matter of Accountancy)

लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) में इन कार्यों को शामिल किया जाता है- 

  • पुस्तपालन की प्रविष्टियों (entries) की जाँच करना
  • तलपट तैयार करना
  • माल खाता बनाना
  • लाभ-हानि खाता बनाना
  • आर्थिक चिट्टा बनाना
  • भूल सुधार के लेख करना
  • समायोजन के लेखे करना
  • परिणामों से निष्कर्ष निकालना तथा व्यवसाय के लिए आवश्यक नीति का निर्धारण करना।

लेखांकन (Accounting)

लेखांकन अर्थ (Meaning)

पहले लेखाकर्म का उद्देश्य व्यवसाय को वित्तीय स्थिति को प्रस्तुत करना और लाभ-हानि बताना होता था क्योंकि लेखाकर्म का सम्बन्ध मुख्यतया व्यवसाय के स्वामी से होता था, किन्तु आजकल लेखाकर्म के कार्य से अनेक लोगों तथा संस्थाओं के हित जुड़ गए है, जैसे- स्वामी ऋणदाता प्रबन्धक, सरकार, वकील, ग्राहक, बैंक, शेयर बाजार, कर्मचारी आदि। 

ये लोग तथा संस्थाएं किसी व्यावसायिक इकाई को वित्तीय सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए इच्छुक रहते हैं। लेखाकर्म को अब इन सभी की आवश्यकताओं को पूरा करना होता है जिस कारण न केवल इसकी विषय-सामग्री अत्यधिक विस्तृत हो गई है वरन इसका स्वरूप ही बदल गया है। गत वर्षों में लेखाकर्म की अवधारणा में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं और इसने लेखाकन का रूप धारण कर लिया है। लेखाकर्म की अपेक्षा लेखांकन विभिन्न तथा अधिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है।

‘लेखांकन’ एक बहुआयामी अवधारणा है तथा इसमें वित्तीय लेखांकन, लागत लेखांकन, प्रबन्धकीय लेखांकन कर लेखांकन, सरकारी लेखांकन आदि शामिल होते हैं। लेखाकर्म या लेखाशास्त्र (Accountancy) एक विस्तृत अवधारणा है जिसका सम्बन्ध उन सिद्धान्तों और तकनीक के विधिवत ज्ञान से है जिनका प्रयोग लेखांकन (Accounting) में किया जाता है। लेखाशास्त्र हमे बताता है कि लेखा-पुस्तकें किस प्रकार तैयार की जाएं, लेखांकन सूचना का सारांश किस प्रकार तैयार किया जाए और इस सूचना (या ज्ञान) को इसमें हित रखने वाले पक्षकारों को किस प्रकार प्रेषित (communicate) किया जाए।

लेखाकर्म तो ज्ञान का भण्डार है जबकि लेखाकन इस ज्ञान के भण्डार का व्यवहार में प्रयोग करता है। इस प्रकार ‘लेखाकन’ लेखाकर्म का अभिन्न अंग है। दूसरे शब्दों मे, लेखाकर्म (लेखाशास्त्र) लेन देनों का लेखा करने के सिद्धान्त एवं पद्धति निर्धारित करता है जबकि वास्तव में लेन-देनों के अभिलेखन (recording) का कार्य लेखांकन करता है।

कोहलर के अनुसार – “लेखाकर्म से आशय लेखाकन के सिद्धान्त एवं व्यवहार सम्बन्धी सम्पूर्ण ढाँचे से है।”

लेखांकन की परिभाषाएं (Definitions of Accounting)

लेखाकन की प्रमुख परिभाषाएं नीचे दी गयी है –

अमेरिका की सर्टिफाइड पब्लिक एकाउन्टेंट्स संस्था (A.I.C.P.A.) के अनुसार, “लेखांकन सौदी तथा घटनाओं को पूर्णतया या आंशिक रूप से वित्तीय स्वभाव के होते हैं, मुद्रा के रूप में महत्वपूर्ण ढंग से लिखने, वर्गीकृत करने तथा सारांश मे व्यक्त करने और परिणामों की व्याख्या करने की कला है।”

आर० एन० एन्थोनी के शब्दों में, “लेखांकन प्रणाली व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं को मौद्रिक रूप में एकत्रित करने, साराश बनाने, विश्लेषण करने तथा जानकारी देने का साधन है।” 

लेखांकन के मूल तत्त्व (Basic Elements of Accounting)

1. वित्तीय व्यवहारों व घटनाओं का सारांश – लेखांकन वित्तीय स्वभाव के व्यावसायिक व्यवहारों एवं घटनाओं की लेखा पुस्तकों में लिखने तथा उन्हें वर्गीकृत करके सारांश में प्रस्तुत करने का विज्ञान एवं कला है। 

2. मौद्रिक रूप में लेखा – लेखांकन के अन्तर्गत उन्हीं लेन-देन तथा घटनाओं को पुस्तकों में लिखा जाता है जिन्हें मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है।

3. सूचना का विश्लेषण तथा निर्वाचन – लेखांकन के आधार पर एकत्रित की गई सूचना का विश्लेषण (analysis) तथा निर्वाचन (interpretation) करने के बाद ही इसे प्रयोगकर्ताओं (users) के पास पहुंचाया जाता है।

Read More…

Sharing is caring!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *