श्रव्य सामग्री (Audio Aids) रेडियो, टेप रिकार्डर

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श्रव्य सामग्री रेडियो, रेडियो की विशेषताएं, शैक्षिक रेडियो की सीमाएँ, रेडियो प्रसारण के शैक्षिक उपयोग एवं सुझाव, प्रभावपूर्ण श्रव्य हेतु रेडियो पाठ का संगठन, शैक्षिक रेडियो सन्देशों की सीमाएँ, टेप रिकार्डर, टेप रिकार्डर की शैक्षिक उपयोगिता, टेप रिकार्डर का उचित प्रयोग कैसे किया जाये इन सभी महत्वपूर्ण विषय पे बात होगी इस आर्टिकल में।

श्रव्य सामग्री (Audio Aids)
श्रव्य सामग्री (Audio Aids)

Table of Contents

रेडियो (Radio)

रेडियो जनसंचार का एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी साधन हैं इसकी शुरुआत पारिवारिक मनोरंजन के माध्यम के रूप में हुई थी। अगर रेडियो के इतिहास को देखा जाये तो इसका प्रसारण सन् 1927 में मुम्बई और कोलकाता में शुरू हुआ था। भारतीय सरकार ने सन् 1930 में अपने अधिकार में ले लिया और उनका संचालन भारतीय प्रसारण सेवा के नाम से करने लगी। भारत में शिक्षा के क्षेत्र में रेडियो के उपयोग की शुरूआत सन् 1929 में हो चुकी थी। वर्ष 1930 में इसका नाम बदलकर ‘ऑल इण्डिया रेडियो’ कर दिया गया है। 

वर्ष 1957 में इसे आकाशवाणी के नाम से एक अलग विभाग के रूप में गठित किया गया। सूचना और प्रसारण मन्त्रालय के सभी जनसंचार विभागों में आकाशवाणी में सबसे बड़ा है और इसके कार्यक्रम भारत में दो करोड़ से अधिक सेटों तथा ट्रान्जिस्टरों के द्वारा सुनाये जाते हैं। यह केवल लोगों को सूचना प्रदान करने में भी बहुत प्रभावशाली माध्यम के रूप में कार्य कर रहा है। यह जनमत का एक ऐसा वातावरण उत्पन्न करने में भी सहायता कर रहा है; जिसके द्वारा सामाजिक परिवर्तन आ सके तथा उसमें लोगों को भागीदार बनाया जा सके।

सन् 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के समय ‘ऑल इण्डिया रेडियो’ के केवल 6 केन्द्र थे, वर्तमान में 86 केन्द्र हैं। इनमें से दो विविध भारती प्रसारण विज्ञापन केन्द्र हैं- एक चण्डीगढ़ में तथा दूसरा कानपुर में भुवनेश्वर और शान्ति निकेतन में दो सहायक स्टूडियो केन्द्र हैं आकाशवाणी केन्द्र देश के सभी महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और भाषायी क्षेत्रों में स्थित हैं। आकाशवाणी कार्यक्रमों के द्वारा हमारे देश में शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य भली-भाँति पूरे किये जा सकते हैं –

  • जनतान्त्रिक पद्धति में विश्वास उत्पन्न करना, जनतान्त्रिक विधियों को दृढ़ताप्रदान करना एवं उत्तम नागरिक निर्माण करना।
  • देश में भावात्मक एवं राष्ट्रीयता उत्पन्न करना और जातीय बन्धनों को समाप्त करना है
  • विश्वबन्धुत्व की भावना करना।
  • राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना, देश-प्रेम की भावना करना और राष्ट्रों हितों को प्रमुखता देने की भावना का विकास करना। 
  • शिक्षण को सरस बनाकर छात्रों में ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा का विकास कराना।
  • छात्रों की कल्पना शक्ति का विकास करना, क्योंकि दृश्य (Visual) न होने से श्रोता को अपने अनुभवों के आधार पर ही वस्तुस्थिति की कल्पना करनी होती है। 
  • अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करना।

रेडियो की विशेषताएं

वैसे तो रेडियो में वे सभी विशेषताएँ हैं, जो किसी भी जनसंचार माध्यम को महत्वपूर्ण बनाती हैं, किन्तु रेडियो की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं, जो निम्न प्रकार है-

मितव्ययी साधन

रेडियो जनसंचार का सबसे सस्ता साधन है। इसका मूल्य कम होने के साथ-साथ इसका रख-रखाव भी आसान है क्योंकि इसमें तकनीकी जटिलताएँ कम हैं और साथ ही इसके कार्यक्रम का निर्माण भी सरल और मितव्ययी होता है। 

व्यापक क्षेत्र

इसका क्षेत्र व्यापक है। उच्च दाब केन्द्रों के स्थापित हो जाने के कारण रेडियो सम्बन्धी प्रसारण देश के कोने-कोने में किया जा सकता है। 

पोर्टेबिल साधन

रेडियो का आकार चूँकि छोटा होता है अतः उसे आसानी से आवश्यकतानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है। 

स्पष्ट प्रसारण

तकनीकी विकास के फलस्वरूप रेडियो में कई प्रकार के परिवर्तन हैं। सॉलिड स्टेट सर्किट्स तथा ट्रांजिस्टर्स के कारण प्रसारण काफी स्पष्ट हुए होता है

सूचनाओं का संग्रह व प्रसार

रेडियो पर न केवल सूचनाओं का संग्रह किया जाता है बल्कि उसका प्रसार भी किया जाता है। उदाहरणार्थ, पुरानी सूचनाओं का रिकॉर्ड कार्यक्रम के रूप में संग्रहित किया जाता है साथ ही देश में होने वाली नवीनतम घटनाओं व ज्ञान को भी अधिक व्यक्तियों तथा प्रसारित किया जा सकता है।

उपलब्धता

रेडियो एक सस्ता साधन होने के कारण उसे आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है।

शैक्षिक रेडियो की सीमाएँ (Limitations of Educational Radio) 

शैक्षिक रेडियो की निम्नलिखित सीमाएँ है

  • दृश्य द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है रेडियो जिसमें किसी दृश्य कार्यक्रम का आयोजन नहीं होता है, वह उतना प्रभावकारी साधन नहीं है।
  • रेडियो के माध्यम से व्यक्तिगत क्रियाओं एवं अनुभवों को भी स्पष्ट रूप में नहीं दर्शाया जा सकता है।
  • यह एक ऐसा माध्यम है जिसमें बहुत अधिक ध्यान को केन्द्रित करने की आवश्यकता रहती है क्योंकि यदि एक बार प्रसंग निकल जाता है तो उसे पुनः समझ पाना असम्भव होता है।
  • यह एक पक्षीय संचार माध्यम है।
  • विज्ञान, तकनीकी इत्यादि विषय जो देखकर अच्छी तरह समझे जा सकते हैं, की दृष्टि से भी रेडियो की कोई विशेष उपयोगिता नहीं है।
  • यह असुविधाजनक रूप में निर्धारित एक समय की घटना होती है, जिसे बार-बार दोहराना मुश्किल है। 

रेडियो प्रसारण के शैक्षिक उपयोग एवं सुझाव

रेडियो प्रसारण के प्रभाव शैक्षिक उपयोग हेतु निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए—-

प्रसारण पूर्व तैयारी – शिक्षक को सम्बन्धित आकाशवाणी केन्द्र के प्रसारण से पूर्व ही कार्यक्रम सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित कर लेनी चाहिए और अपने पाठ्यक्रम सम्बन्धी कार्यक्रमों को छात्रों को सुनवाना चाहिए तथा कार्यक्रम टेप करने की तैयारी कर लेनी चाहिए।

क्रियान्वयन

क्रियान्वयन के स्तर पर निम्नलिखित गतिविधियों की जाती हैं जैसे – 

  • सर्वप्रथम शिक्षक कार्यक्रम के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करता है जिसके अन्तर्गत वह छात्रों को नवीन पद्धति के महत्त्व से अवगत कराता है, जिससे उनमें रुचि रहे।
  • कार्यक्रम प्रसारण के दौरान छात्रों पर ध्यान रखना व अनुशासन बनाये रखना जिससे छात्र ध्यानपूर्वक सुनें। 
  • शिक्षकों व छात्रों द्वारा मुख्य बिन्दुओं को नोट कराना।
  • शिक्षक द्वारा समय-समय पर संक्षेपीकरण।

प्रसारण पश्चात् क्रियाएँ

प्रसारण के पश्चात् निम्न क्रियाएँ की जाती हैं जैसे – 

  • शिक्षक द्वारा पुनरावृत्ति।
  • छात्रों के मध्य या विशेषज्ञ व छात्रों में चर्चा।
  • छात्रों के अधिगम स्तर में सुधार हेतु प्रतिपुष्टि प्रदान करना। 
  • छात्रों का मूल्यांकन।
  • छात्रों को गृह कार्य देना।

प्रभावपूर्ण श्रव्य हेतु रेडियो पाठ का संगठन (Organising a Radio Lesson for Effective Lestening)

तैयारी (Preparation)

शिक्षक को जो भी रेडियो सन्देश प्राप्त किये जाते हैं उनकी पूरी जानकारी होनी चाहिए इसके लिए उसे ऑल इण्डिया रेडियो द्वारा इन कार्यक्रमों की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिए। सीखने की परिस्थितियों को अधिक महत्त्वपूर्ण और उपयोगी बनाने के लिए शिक्षक की पाठ से सम्बन्धित तैयारियों जैसे- विषय क्षेत्र की आवश्यक सामग्री, ग्राफ, सम्बन्धित तथा अन्य प्रोजेक्टेड सामग्री रखनी चाहिए जिससे आवश्यकतानुसार साधनों का उपलब्ध कराया जा सके।

कार्यक्रम को सुनना (Listening to the Programme)

कार्यक्रम को रेडियो पर सुनने के लिए निम्न सावधानियाँ शिक्षक को रखनी चाहिए—

  • रेडियो को खोलने में समय का ध्यान रखा जाये।
  • आवाज तथा स्वर को आवश्यकतानुसार नियन्त्रित किया जाये।
  • अनेक श्रोता होने पर एक अतिरिक्त स्पीकर का प्रयोग किया जाये।
  • श्रोताओं को बैठने की सुविधा दी जाये तथा आवाज को इतना ऊँचा रखा जाये जिससे कि शैक्षिक वातावरण बन सके। कार्यक्रम को आवश्यकतानुसार रिकार्ड भी किया जा सकता है जिससे बाद में उससे लाभ उठाया जा सके।

पृष्ठपोषण (Feedback)

बच्चों ने रेडियो कार्यक्रमों से कितना सीखा इसके लिए उचित प्रश्न उनसे किये जा सकते हैं। कार्यक्रम पर वाद-विवाद किया जा सकता है। और आवश्यकतानुसार शिक्षक उन्हें पृष्ठपोषण देने हेतु अपनी टिप्पणी तथा व्याख्या प्रस्तुत कर सकता है।

एकीकरण (Consoldidation)

तथ्यों के परिणामों को एकत्रित किया जाये तथा उसके कार्यान्वयन (Follow up work) हेतु शिक्षकों द्वारा छात्रों से लिखित रूप में गृह कार्य कराया जाये तथा उसके लिए उपर्युक्त योजना तैयार की जाये।

मूल्यांकन लेखा (रिपोर्ट) (Evaluation Report)

रेडियो कार्यक्रम के अन्दर एक मूल्यांकित रिपोर्ट जो कि पृष्ठपोषण तथा छात्रों के लिखित गृह कार्य पर आधारित हो शिक्षक द्वारा तैयार करके ‘ऑल इण्डिया रेडियो’ को भेजी जाये। इसी प्रकार की मूल्यांकन रिपोर्ट भी ‘बुक लेट’ रूप में छपवाई जानी चाहिए। स्कूलों में एक सलाहकार समिति का निर्माण किया जाये जो समय-समय पर रेडियो स्टेशन को कार्यक्रमों के लिए सुझाव भेजे। 

शैक्षिक रेडियो सन्देशों की सीमाएँ

  • दृश्य द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान अधिक स्थायी होता है। सम्पूर्ण ज्ञान के लिए दृश्य सूचना अधिक आवश्यक है। अतः रेडियो जिसमें कोई दृश्य कार्यक्रम का आयोजन नहीं होता है वह उतना प्रभावशाली साधन नहीं है।
  • विशेषता कुछ विषयों जैसे विज्ञान, तकनीकी इत्यादि जो देखकर अधिक अच्छी तरह समझे जा सकते हैं। इन विषयों की दृष्टि से भी रेडियो की कोई उपयोगिता नहीं है। रेडियो के माध्यम से व्यक्तिगत क्रियाओं व अनुभवों को भी स्पष्ट रूप में नहीं दर्शाया जा सकता।
  • यह एक ऐसा माध्यम है जिसमें बहुत अधिक ध्यान को केन्द्रित करने की आवश्यकता रहती है क्योंकि एक बार यदि कोई प्रसंग निकल जाता है तो उसे दुबारा समझ पाना सम्भव नहीं है। फिर जो चीज देखी नहीं जाती उस पर ध्यान भी ज्यादा लगाना पड़ता है। 
  • यह ‘एक तरफीय’ संचार माध्यम है
  • यह सुविधाजनक रूप से निर्धारित व ‘एक समय’ की घटना होती है जिसे बार-बार दुहराना मुश्किल है।
  • यह प्रशासन की समस्याओं को बढ़ा देता है।

टेप रिकार्डर (Tape Recoder)

कक्षा शिक्षण में जितनी भी श्रव्य सामग्री प्रयुक्त की जाती है। उनमें सर्वप्रथम स्थान उसकी उपयोगिता के कारण ‘टेप रिकार्डर (Tape Recoder) को दिया जाता है। टेप- रिकार्डर एक ऐसा यन्त्र है जिसमें ध्वनि को टेप पर रिकॉर्ड या संग्रहित कर लिया जाता है। यह ग्रामोफोन की तरह चालित होता है।

कक्षा-कक्ष शिक्षण में टेप रिकार्डर रेडियो से भी अधिक उपयोगी माना जाने का प्रमुख कारण यह है कि रेडियो कार्यक्रम के अनुसार हमें कक्षा का समय बदलना पड़ता है। और जब रेडियो पर कार्यक्रम प्रसारित हो, तभी कक्षा सुनकर लाभान्वित हो सकती है। परन्तु टेप रिकार्डर कक्षा कार्य के अनुसार जब चाहे तब प्रयुक्त किया जा सकता है। टेप रिकार्डर के साथ समय की कोई अड़चन नहीं है।

टेप रिकार्डर प्रत्येक कक्षा में आसानी से प्रयुक्त किया जा सकता है। वक्तव्यों भाषणों, कविताओं, अभिनयों, गीतों, एकांकी नाटकों के जहाँ पर ग्रामोफोन रिकॉर्ड स्थायी रिकॉर्ड है। वहाँ पर तार या फीता कर लिया गया रिकॉर्ड अस्थायी है। इच्छित समय के अन्दर रिकॉर्ड भरना टेप रिकार्डर में सुगमता से किया जा सकता है। इस दृष्टि से कक्षा शिक्षण में टेप रिकॉर्डर ग्रामोफोन रिकॉडों से भी अधिक उपयोगी माना गया है। ये दो प्रकार के होते हैं-

1.कैसेट टाइप

प्रायः घरेलू तथा शैक्षिक उपयोग के लिए कैसेट के रूप में मिलते हैं तथा सुविधाजनक हैं क्योंकि एक ही स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाये जा सकते हैं क्योंकि यह ड्राई बैटरी से भी चल सकते हैं।

2.स्थूल (पूली) टाइप 

यह पर्याप्त बड़े आकार के होते हैं तथा केवल बिजली से ही चलते हैं इन्हें सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं ले जाया जा सकता है।

टेप रिकार्डर की शैक्षिक उपयोगिता (Educational Utility of Tape- Recorder)

टेप रिकार्डर श्रव्य साधनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी शैक्षिक उपयोगिता निम्न प्रकार से देखी जा सकती है-

  • टेप रिकार्डर भाषा सम्बन्धी मौखिक अभिव्यक्ति के गुणों को विकसित करने में अत्यन्त सहायक सिद्ध हो सकता है। छात्र अपनी बोलचाल सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करने में इसकी सहायता ले सकते हैं छात्र अपनी वार्ता को टेप करके, पुन: सुनकर अपनी त्रुटियों का पता लगाकर उन्हें सुधारने का प्रयास कर सकते हैं।
  • टेप रिकार्डर की सहायता से वार्तालाप का अभ्यास सशक्त अभिव्यक्ति का अभ्यास तथा नाटकीयता की प्रभावशाली विधियों का विकास आसानी से किया जा सकता है। इसमें छात्र अपने पूर्व शिक्षण के स्तर तथा उत्तर शिक्षण व अभ्यास (Post teaching and Practice) के स्तर की भाषा सुनकर, उसमें आये सुधार का स्वयं मूल्यांकन कर सकते हैं।
  • टेप रिकॉर्डर का प्रयोग विद्यालय की विभिन्न पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का संगठन, संचालन एवं मूल्यांकन करने में सहायता प्रदान कर सकता है। 
  • इसकी सहायता से महान व्यक्तियों के व्याख्यान तथा विचारों को सुरक्षित रखकर, आवश्यकतानुसार समय-समय पर छात्रों को सुनवाया जा सकता है।
  • उच्चारण सम्बन्धी दोषों को दूर करने में तो इसका प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुआ है। एक शब्द का उच्चारण बार-बार करके छात्रों को उसके शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराया जा सकता है। 
  • कुछ विशेष विषय; जैसे-संगीत, नृत्य, अभिनय आदि सीखने में यह सहायता करता है। 
  • कोई भी वार्ता छात्रों को एक बार सुनकर समझ में नहीं आती हो तो उसे दुबारा भी सुनवाया जा सकता है।
  • विद्यालय में समय-समय पर होने वाले कार्यक्रमों, सम्म्मेलनों, कार्यशालाओं विचारगोष्ठियों आदि की कार्यवाही रिकार्ड करने में टेप रिकार्डर की सहायता ली जा सकती है।
  • फिल्म पट्टियों एवं स्लाइड्स के लिए व्याख्यात्मक वर्णन तैयार करने में इसकी सहायता ली जा सकती है। 
  • रिकॉर्डिंग सुविधा के कारण कोई भी शिक्षक अपने शिक्षण कार्य को रिकॉर्ड कर उसका स्वयं मूल्यांकन कर सकता है।

टेप रिकार्डर का उचित प्रयोग कैसे किया जाये (How to use a Tape- Recorder Effectively) 

वैसे देखा जाये तो टेप रिकार्डर का प्रयोग बहुत सरल है, फिर भी इसका प्रयोग करते समय कुछ विशेष बिन्दु ध्यान में रखने चाहिए जो अग्र प्रकार है-

  • इसको हमेशा समतल तथा सख्त धरातल पर उचित स्थिति में रखना चाहिए, जैसे मेज आदि।
  • टेप रिकार्डर में विभिन्न क्रिया निर्देशों तथा नियन्त्रण बटन जैसे- चलाओ, रोको, रिकॉर्ड, आगे बढ़ना आदि लग जाते हैं। शिक्षक को इन सभी की जानकारी होनी चाहिए। 
  • टेप रिकार्ड कक्षा में ऐसे स्थान पर रखना चाहिए, जिससे कक्षा के सभी छात्रों को आवाज स्पष्ट सुनायी दे।
  • टेप रिकार्डर का प्रयोग करने से पूर्व छात्रों को मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहिए।
  • जब टेप रिकार्ड को चलाया जाये तो शुरू में आवाज धीमी रखें, उसके बाद चलाने के वाले बटन की सहायता से आवश्यकतानुसार आवाज को ऊँचा किया जाये। बाद में ध्वनि नियन्त्रण की सहायता से अनुकूल आवाज को व्यवस्थित किया जा सकता है।
  • इसका प्रयोग करते समय शिक्षक को पूरी तरह से ध्यान रखना चाहिए कि छात्र ध्यानपूर्वक सुन रहे हैं। शिक्षक को स्वयं भी सावधानीपूर्वक वार्ता को सुनना चाहिए जिससे उसे भी विषय-वस्तु का पूर्ण ज्ञान हो।
  • किसी भी विषय-वस्तु की रिकॉर्डिंग करते समय गति नियन्त्रण को दबा देना चाहिए और बोलने वाले को स्पष्ट तथा सशक्त आवाज में विचार व्यक्त करने के लिए कहना चाहिए।
  • जिस समय टेप रिकार्डर से छात्रों को शिक्षित किया जाये, उस समय छात्रों को किस प्रकार के व्यवहार को प्रदर्शित करना है, इस सम्बन्ध में भी पहले से ही स्पष्ट निर्देश दे देने चाहिए।
  • इसका प्रयोग करने के पश्चात् शिक्षक को परीक्षण द्वारा यह पता लगा लेना चाहिए कि छात्रों ने विषय-वस्तु को ध्यान से सुना है या नहीं तथा शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है।
  • वार्ता सुनने के बाद टेप रिकार्ड से कैसेट को निकालकर अलग रखना चाहिए । ध्वनि प्रसारक सहित टेप रिकार्ड को ठीक ढंग से बन्द करके उचित स्थान पर रखना चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि पुनः घुमाव नियन्त्रण के द्वारा पूरी टेप फिर से पलट दी जाये, जिससे यदि दुबारा प्रयोग करना पड़े तो परेशानी न हो।

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