पुस्तपालन या बहीखाता (Book-keeping) | अर्थ, परिभाषा, विशेषताए, विभिन्न प्रणालियाँ

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बहीखाता की शुरुआत – प्रारम्भ में व्यावसायिक लेन-देनों की संख्या बहुत ही कम होती थी जिन्हें व्यवसायी बिना लिखे ही याद रख लिया करते थे। किन्तु वर्तमान में लेन-देनों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि उन्हें मौखिक रूप से याद रखना सम्भव नहीं रहा। स्मरण-शक्ति के सीमित होने के कारण व्यवसायियों को कागज और कलम का सहारा लेना पड़ा और यह कहावत चरितार्थ होने लगी – ‘पहले लिख पीछे दे, भूल पड़े तो कागज से ले।’ इस कहावत का भावार्थ यही है कि व्यवसाय (business) को उचित ढंग से संचालित करने के लिए व्यावसायिक लेन-देनों का हिसाब-किताब लिखित रूप में रखना परमावश्यक है। व्यावसायिक लेन-देनों को लिखित स्वरूप देने के परिणामस्वरूप बहीखाता अथवा पुस्तपालन (Book-keeping) का कार्य प्रारम्भ हो गया।

Book-keeping
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पुस्तपालन का अर्थ (Meaning of Book-keeping)

अंग्रेजी भाषा का शब्द ‘Book-keeping’ दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘Book’ तथा ‘keeping’, हिन्दी भाषा में ‘बुक’ का अर्थ ‘पुस्तक’ तथा ‘कीपिंग’ का अर्थ ‘रखना’ होता है। इस प्रकार ‘बुक-कीपिंग’ का शाब्दिक अर्थ हुआ- ‘पुस्तक रखना’। किन्तु यह ‘बुक-कीपिंग’ का सही अर्थ नहीं है। ‘बुक-कीपिंग’ या पुस्तपालन का अर्थ पुस्तकों को मेज पर या अलमारी में सजाकर रखना नहीं है, वरन् पुस्तपालन का अर्थ होता है-व्यावसायिक सौदों अथवा लेन-देनों को हिसाब-किताब की निर्धारित पुस्तकों में नियमानुसार लिखना।

‘पुस्तक’ (Book) से अभिप्राय उन लेखा-पुस्तकों या बहियों (Books of accounts) से होता है जिनमें व्यावसायिक लेन-देनों को लिखा जाता है जबकि ‘पालन’ का आशय व्यावसायिक लेन-देनों को निश्चित विधि के अनुसार लेखा-पुस्तकों में लिखने से है। पुस्तपालन हमें इस बात का ज्ञान कराता है कि व्यावसायिक लेन-देनों का लेखा किन-किन पुस्तकों में तथा किस विधि से करना चाहिए।

पुस्तपालन या बहीखाता (Book-keeping)

फरा ल्युकस पैसियोली (Fra Lucas Paciolh) को आधुनिक पुस्तपालन का जन्मदाता माना जाता है। इनकी ‘De Computiset Scripturise’ नामक पुस्तक सन् 1494 में इटली के वेनिस नगर से प्रकाशित हुई जिसे पुस्तपालन की प्रथम पुस्तक बताया जाता है। इस पुस्तक ने पुस्तपालन को विज्ञान तथा कला का स्वरूप प्रदान किया। इसके प्रकाशन से पूर्व दोहरा लेखा प्रणाली बिखरे हुए स्वरूप में थी।

पुस्तपालन की परिभाषाएँ (Definitions of Book-keeping)

पुस्तपालन अथवा बहीखाता वह कला एवं विज्ञान है जिसके अन्तर्गत व्यावसायिक तथा वित्तीय सौदों का लेखा मौद्रिक रूप में निश्चित नियमों के अनुसार निश्चित लेखा-पुस्तकों में निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किया जाता है।

जे० आर० बाटलीबॉय के अनुसार, “पुस्तपालन व्यावसायिक लेन-देनों को निर्धारित पुस्तकों में लिखने की कला है।” 

ए० जे० फेवेल के अनुसार, “पुस्तपालन किसी व्यवसाय सम्बन्धी वित्तीय व्यवहारों को नियमबद्ध ढंग से लेखा करने की क्रिया है ताकि व्यवसाय सम्बन्धी कोई सूचना शीघ्रता से प्राप्त की जा सके।”

नार्थकॉट के अनुसार, “बहीखाता वाणिज्यिक अथवा वित्तीय व्यवहारों के मौद्रिक पहलू को हिसाब की पुस्तकों में लिखने की कला है।” 

स्पॉइसर और पेगलर के अनुसार, “बहीखाता व्यावसायिक व अन्य सौदों को मौद्रिक रूप में खातों में लिखने की कला है।”

जॉन मेकनी के अनुसार, “बहीखाता से अभिप्राय सौदों को मुद्रा के रूप में नियमानुसार लिखने से है।”

बहीखाता के मूल तत्त्व (Essentials of Book-keeping)

1. विज्ञान तथा कला

पुस्तपालन विज्ञान तथा कला दोनों है। यह विज्ञान (Science) इसलिए है क्योंकि इसमें हिसाब-किताब तैयार करते समय निश्चित नियमों तथा सिद्धान्तों का पालन किया जाता है जिससे लेखे क्रमबद्ध ज्ञान का रूप धारण कर लेते हैं। पुस्तपालन कला (Art) इसलिए है, क्योंकि इसमें हिसाब-किताब तैयार करने के सिद्धान्तों को व्यवहार में अपनाने की विधियों का ज्ञान कराया जाता है। यह हमें बतलाता है कि व्यावसायिक सौदों को बहियों में निपुणता से किस प्रकार लिखना चाहिए तथा बहियों का उचित प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है।

2. वित्तीय व्यवहारों का लेखा

बहीखातों में केवल वित्तीय स्वभाव के सौदों को ही लिखा जाता है। जिन व्यवहारों अथवा घटनाओं का स्वभाव वित्तीय नहीं होता उनका लेखा हिसाब-किताब की पुस्तकों में नहीं किया जाता, जैसे – हड़ताल, तालाबंदी आदि।

वित्तीय घटनाओं का लेखा

लेखा पुस्तकों में उन वित्तीय घटनाओं (events) का भी लेखा किया जाता है जो – 

  • व्यवसाय करते समय होती हैं
  • मौद्रिक रूप में आँकी जा सकती है
  • व्यवसाय के लाभ-हानि को प्रभावित करती हैं, जैसे-अग्नि से माल नष्ट होना, माल का चोरी हो जाना इत्यादि।

3 मौद्रिक रूप में लेखा

बहीखातों में व्यावसायिक सौदों को केवल मौद्रिक (monetary) रूप में लिखा जाता है। 

4. निश्चित पुस्तकों का प्रयोग

वित्तीय सौदों की प्रविष्टियाँ (entries) निर्धारित लेखा-पुस्तकों में की जाती हैं जिन्हें अंग्रेजी पद्धति में रोजनामचा (Journal) तथा खाताबही (Ledger) और भारतीय बहीखाता पद्धति में कच्ची व पक्की रोकड़ बही, खाताबही आदि के नाम से जाना जाता है।

5. निश्चित प्रणाली के अनुसार लेखन

लेखे तैयार करने की मुख्य रूप से दो प्रणालियाँ प्रचलित हैं – 

  1. पाश्चात्य या अंग्रेजी बहीखाता प्रणाली
  2. भारतीय बहीखाता प्रणाली

हिसाब की पुस्तकों में सौदों का लेखा इनमें से किसी भी एक प्रणाली के अनुसार किया जाता है।

6. निश्चित नियमों व सिद्धान्तों का पालन 

प्रत्येक बहीखाता प्रणाली के अपने कुछ निश्चित नियम व सिद्धान्त है। जिनका, सौदों (व्यवहारों) को हिसाब की पुस्तकों में लिखते समय, पालन किया जाना चाहिए।

7. निश्चित उद्देश्य

व्यावसायिक लेखे किसी उद्देश्य से तैयार किए जाते हैं, जैसे- लाभ या हानि का ज्ञान, वित्तीय स्थिति का ज्ञान, ऋण-स्थिति (देनदारियाँ व लेनदारियाँ) का ज्ञान इत्यादि।

पुस्तपालन की विभिन्न प्रणालियाँ (Different Systems of Book-keeping)

व्यावसायिक हिसाब-किताब रखने की ऐसी कोई भी प्रणाली नहीं है जिसके अनुसार हिसाब-किताब रखना वैधानिक रूप से अनिवार्य हो। वास्तविकता तो यह है कि व्यवसायी बहीखाते की विधि का चयन अपनी आवश्यकता, योग्यता तथा सुविधा के अनुसार करते हैं। 

आजकल व्यवसायियों तथा विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुस्तपालन या बहीखाता को मुख्यतः निम्न प्रणालियां अपनाई जाती है

रोकड़ प्रणाली (Cash System)

इस पद्धति में केवल नकद लेन-देनों का ही लेखा किया जाता है तथा इस कार्य के लिए रोकड़ बही (Cash Book) का प्रयोग किया जाता है। उधार व्यवहारों को अलग बही में लिखते हैं तथा उनका भुगतान हो जाने पर उन्हें रोकड़ बही में लिख लिया जाता है। चूंकि इस प्रणाली में लाभ-हानि खाता नहीं बनाया जाता, इसलिए प्राप्ति एवं भुगतान खाता (Receipts and Payments Account) तथा आय-व्यय खाता (Income and Expenditure Account) बनाकर संस्था का आधिक्य (surplus) अथवा कमी (deficit) ज्ञात कर ली जाती है।

प्रयोग– इस पद्धति का प्रयोग प्रायः उन्हीं व्यवसायियों द्वारा किया जाता है जिनके लेन-देन नकद होते हैं, जैसे- डॉक्टर, वकील आदि। कुछ गैर-व्यावसायिक संस्थाएं, जैसे विद्यालय, अस्पताल, पुस्तकालय, अनाथालय, गौशाला, क्लब, मनोरंजन समितियाँ आदि भी रोकड़ प्रणाली का प्रयोग करती है।

इकहरा लेखा प्रणाली (Single Entry System)

इसे ‘एक अंकन प्रणाली‘ भी कहते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत रोकड़-पुस्तक के अतिरिक्त खाताबही (Ledger) का भी प्रयोग किया जाता है। इसके अन्तर्गत कुछ लेन-देनों के तो दोनों पक्ष लिखे जाते हैं जबकि कुछ का केवल एक पक्ष ही लिखा जाता है। कुछ सौदों का तो लेखा भी नहीं किया जाता। चूंकि इस विधि द्वारा व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का ठीक-ठीक ज्ञान नहीं हो पाता इसलिए इसे अवैज्ञानिक तथा अपूर्ण प्रणाली माना जाता है।

दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System)

इस प्रणाली में प्रत्येक व्यवहार को दो खातों में लिखा जाता है-एक खाता ऋणी (Debit) तथा दूसरा खाता धनी (Credit) किया जाता है। बहीखाता की यह अत्यन्त लोकप्रिय प्रणाली है जिसका प्रयोग विश्व के लगभग सभी देशों में किया जा रहा हा है।

भारतीय बहीखाता प्रणाली (Indian System of Book-keeping)

यह अत्यन्त प्राचीन प्रणाली है जिसके अन्तर्गत हिसाब-किताब रखने के लिए लम्बी-लम्बी बहियों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रणाली में हिन्दी, महाजनी, गुजराती, मुड़िया आदि भारतीय भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। यह लेखा प्रणाली भी ‘दोहरा लेखा प्रणाली पर आधारित है। देश के अधिकांश सेठ साहूकार, देशी महाजन आदि अपना हिसाब-किताब इसी प्रणाली द्वारा तैयार करते हैं। इसका प्रादुर्भाव भारत में होने के कारण इसे ‘भारतीय बहीखाता प्रणाली’ कहते हैं।

आदर्श बहीखाता प्रणाली की विशेषताएँ (Characteristics of Ideal System of Book-keeping)

समय- समय पर प्रचलित विभिन्न प्रणालियों के अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि एक आदर्श बहीखाता प्रणाली में निम्न गुण होने चाहिए –

उपयुक्तता (Appropriateness)

हिसाब-किताब रखने की प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो किसी व्यवसाय को न केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता रखती हो, बल्कि उसमें भविष्य में होने वाले परिवर्तनों का भी समावेश किया जा सके। 

सरलता (Simplicity)

बहीखाता प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसे सामान्य शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी समझ सके तथा उसके अनुसार हिसाब रख सके अन्यथा व्यवसायी को विशेषज्ञों की सहायता लेनी पड़ेगी।

शीघ्रता (Quickness)

व्यवसायी का समय मूल्यवान होता है। अतः बहीखाता प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसमें किसी खाता-विशेष को देखने तथा आवश्यक जानकारी प्राप्त करने के कार्य को शीघ्रता से सम्पन्न किया जा सके। 

पूर्णता (Completeness)

यदि लेखे पूर्ण नहीं हैं तो उनसे रोकड़, आय-व्यय, दायित्व, सम्पत्ति, लाभ-हानि आदि के बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त नहीं हो सकती। ऐसी स्थिति में तो व्यवसाय के उद्देश्यों की ही पूर्ति नहीं हो पाएगी। अतः लेखे पूर्ण होने चाहिए।

मितव्ययिता (Economy)

एक आदर्श बहीखाता प्रणाली उसे कहा जा सकता है जो व्यवसाय पर खर्च का अनावश्यक बोझ न डालती हो, अर्थात् बहीखाता प्रणाली में मितव्ययिता का गुण होना चाहिए।

शुद्धता (Accuracy)

अशुद्ध लेखों के कारण व्यवसायों को प्रायः हानि उठानी पड़ जाती है, क्योंकि- (i) अशुद्ध लेखों के कारण अन्य व्यवसायियों के साथ मुकदमेबाजी की नौबत आ सकती है तथा (ii) खातों के अशुद्ध होने पर आयकर, विक्रीकर आदि के निर्धारण में कठिनाई आती है। इन सब बातों का व्यवसाय की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत: खाते शुद्ध होने चाहिए।

लचीलापन (Elasticity)

बहीखाता प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसे व्यवसाय का विस्तार होने पर बढ़ाया जा सके तथा व्यवसाय का संकुचन होने पर घटाया जा सके। 

निश्चितता एवं वैधानिकता (Certainty and Legality)

बहीखाता प्रणाली निश्चित, सरल तथा व्यावहारिक नियमों तथा सिद्धान्ता पर आधारित होनी चाहिए ताकि उसे एक आधुनिक एवं वैज्ञानिक प्रणाली के रूप में अपनाया जा सके।

एकरूपता (Uniformity)

पुस्तपालन में एक ही प्रकार की पद्धति अपनायी जानी चाहिए तथा सभी स्थानों पर उसका पालन किया जाना चाहिए।

वैधानिक प्रावधानों का पालन (Compliance of Legal Provisions)

बहीखाता प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसमें सभी कानूनी प्रावधानों (provisions) का पालन किया गया हो।

विश्वसनीयता (Reliability)

पुस्तपालन को प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसमे छल-कपट, जालसाजी, गबन, फेरबदल आदि की सम्भावनाएँ न्यूनतम हो।

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