
सम्प्रेषण का अर्थ (Meaning of Communication)
सम्प्रेषण शब्द अंग्रेजी के कम्यूनीकेशन (Communication) का हिन्दी रूपान्तरण है। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘कम्यूनीम’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है ‘सामान्य’ या ‘कॉमन’ ।
अतः सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने ज्ञान, हाव-भाव, मुख मुद्रा तथा विचारों आदि का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं तथा इस प्रकार से प्राप्त विचारों अथवा सन्देशों को समान तथा सही अर्थों में समझने और प्रेषण करने में उपयोग करते हैं ।
परिभाषाएँ (Definitions)
- पॉल लीगन्स के अनुसार “सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा दो या अधिक लोग विचारों, तथ्यों, भावनाओं, प्रभावों आदि का इस प्रकार परस्पर विनिमय करते हैं कि सभी लोग प्राप्त सन्देशों को समझ जाते हैं। सम्प्रेषण में सन्देश देने वाले तथा सन्देश ग्रहण करने वाले के मध्य सन्देशों के माध्यम से समन्वय स्थापित किया जाता है।”
- एण्डरसन के अनुसार ” – सम्प्रेषण एक गत्यात्मक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति चेतनतया अथवा अचेतनतया, दूसरों के संज्ञानात्मक ढाँचे को सांकेतिक (हाव-भाव आदि) रूप में उपकरणों या साधनों द्वारा प्रभावित करता है।”
- लूगीस एवं वीगल के अनुसार – “सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत सूचनाओं, निर्देशों तथा निर्णयों द्वारा लोगों के विचारों, मतों तथा अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाया जाता है।”
- एडगर डेल (Eder Dale) के अनुसार – “सम्प्रेषण विचार-विनिमय के मूड (Mood) में विचारों तथा भावनाओं को परस्पर जानने तथा समझने की प्रक्रिया है।”
सम्प्रेषण का महत्त्व (Importance of Communication)
शिक्षा एक विकास की प्रक्रिया है जिसका सम्पादन कक्षा शिक्षण में किया जाता है। शिक्षा प्रक्रिया की इकाई कक्षा है। शिक्षण की क्रिया का संचालन सम्प्रेषण प्रवाह से किया जाता है। शिक्षण को अन्तः प्रक्रिया मानते हैं और सम्प्रेषण प्रवाह भी अन्तःक्रिया प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है। कक्षा के सम्प्रेषण में शाब्दिक सम्प्रेषण, अशाब्दिक सम्प्रेषण तथा लिखित सम्प्रेषण, तीनों प्रवाहों को प्रयुक्त किया जाता है। इसके अतिरिक्त अशाब्दिक सम्प्रेषण अथवा हाव-भाव से शिक्षक अपनी भावनाओं एवं अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करता है। इस प्रकार कक्षा सम्प्रेषण में शाब्दिक तथा अशाब्दिक अन्तःप्रक्रिया का सम्पादन किया जाता है। जिससे कक्षा में सामाजिक भावात्मक वातावरण का सृजन किया जाता है और शिक्षार्थी उसमें सीखने के अनुभव प्राप्त करते हैं, जिससे शिक्षार्थियों के व्यवहारों में अपेक्षित परिवर्तन किये जाते हैं।
सम्प्रेषण की विशेषताएँ (Characteristics of Communication)
सम्प्रेषण की मुख्य विशेषताएँ हैं –
- सम्प्रेषण में परस्पर विचारों एवं भावनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। यह शिक्षण प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण घटक है
- सम्प्रेषण एक पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।
- यह द्विवाही (Two way) प्रक्रिया है । इसमें दो पक्ष होते हैं-एक सन्देश देने वाला, तथा दूसरा सन्देश ग्रहण करने वाला।
- सम्प्रेषण में अन्तःप्रक्रिया निहित होती है एवं दोनों पक्षों का विकास होता है। दोनों ही पक्ष क्रियाशील रहते हैं।
- सम्प्रेषण प्रक्रिया एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया होती है।
- विचारों एवं भावनाओं के आदान-प्रदान को प्रोत्साहन दिया जाता है।
- सम्प्रेषण की प्रक्रिया में अनुभवों की साझेदारी होती है।
- सम्प्रेषण की प्रक्रिया में परस्पर अन्त: प्रक्रिया पृष्ठपोषण होना आवश्यक होता
- इसमें आदान-प्रदान की प्रक्रिया को पृष्ठपोषण दिया जाता है।
- सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रत्यक्षीकरण समावेशित होता है।
- सम्प्रेषण में व्यक्ति या व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रत्यक्षीकरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- सम्प्रेषण में व्यक्ति उन्हीं विचारों का प्रत्यक्षीकरण करते हैं, जिनकी उन्हें अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं, मूल्यों, प्रेरकों, परिस्थितियों या पृष्ठभूमि के अनुसार चाह होती है।
- सम्प्रेषण सदैव गत्यात्मक प्रक्रिया होती है।
सम्प्रेषण के मुख्य चार कार्य हैं—
- सूचना प्रत्यक्ष करना।
- निर्देश, आदेश अथवा सन्देश प्रेषित करना।
- परस्पर विश्वास जाग्रत करना।
- समन्वय स्थापित करना।
सम्प्रेषण प्रक्रिया के तत्व (Elements of Communication)
सम्प्रेषण प्रक्रिया में निम्नांकित तत्वों का होना आवश्यक होता है
सम्प्रेषण का सम्बन्ध (Communication Context)
- भौतिक सन्दर्भ – स्कूल, शिक्षा-कक्ष आदि,
- सामाजिक सन्दर्भ – कक्षा अथवा विद्यालय का वातावरण,
- मनोवैज्ञानिक सन्दर्भ – औपचारिकता / अनौपचारिक तथा
- समय सन्दर्भ – दिन का समय तथा समय की अवधि।
सन्देश का स्रोत (Source of Message)
व्यक्ति, शिक्षक, घटना जो शाब्दिक या अशाब्दिक संकेत प्रदान करते हैं, सन्देश स्रोत कहलाते हैं। जब यह स्रोत व्यक्ति होता है तो इसे सन्देश भेजने वाला कहते हैं। सम्प्रेषण प्रक्रिया सन्देश स्रोत से ही प्रारम्भ होती है जो सन्देश की विषय-वस्तु निर्धारित करता है उनकी कोडिंग भी करता है प्रसारण भी करता है। सन्देश का वांछित प्रभाव डालने के लिए सन्देश भेजने वाला सन्देश को अच्छी तरह से तैयार करता है तथा उचित माध्यम से उसका सम्प्रेषण करता है।
सन्देश (Message)
यह एक उद्दीपक (Stimulus) होता है जो सन्देश भेजने वाला प्रेषित करता है। सन्देश मौखिक रु में लिखित रूप में तथा व्यक्ति की मुख मुद्रा अथवा हाव-भाव के रूप हो सकता है। यह किसी संकेत, जैसे-पोस्टर, चार्ट, पैम्फ्लेट या सूचना पैकेज में भी प्रेषित किया जा सकता है।
सम्प्रेषण का माध्यम (Medium of Communication)
वह साधन जिसके द्वारा कोई सन्देश, सन्देश स्रोत से सन्देश प्राप्त करने वाले तक पहुँचता है । सम्प्रेषण का माध्यम कहलाता है। सन्देश का माध्यम वह पथ है जिसमें सन्देश भौतिक रूप से प्रेषित किया जाता है। तार, रेडियो, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें, पत्र, स्टूडियो आदि सम्प्रेषण के माध्यम हैं।
संकेत (Symbol)
संकेत अथवा प्रतीक वे हैं जो किसी अन्य वस्तु का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये संकेत शाब्दिक या अशाब्दिक हो सकते हैं।
एनकोडिंग (Encoding)
यह वह प्रक्रिया है जिसमें किसी विचार या भावना की अभिव्यक्ति के लिए संकेतों या प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है।
डिकोडिंग (Decoding)
यह वह प्रक्रिया है जिसमें सन्देश प्राप्त करने वाला व्यसन्देश स्रोत से प्राप्त संकेतों या प्रतीकों का अनुवाद कर सन्देश ग्रहण करता है।
पृष्ठपोषण (Feedback)
यह वह प्रत्युत्तर होता है जो सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति सन्देश प्राप्त करने के पश्चात् भेजता है; जैसे-सन्देश प्राप्ति की सूचना, सन्देश पढ़कर अपना मत प्रकट करना आदि।
सन्देश ग्रहणकर्त्ता (Receiver)
सन्देश ग्रहणकर्त्ता वह व्यक्ति है जो सम्प्रेषण की प्रक्रिया में सन्देश प्राप्त करता है; जैसे- श्रोता, शिक्षार्थी, दर्शक, पत्र-पत्रिकाओं के पाठक आदि।
सम्प्रेषण के प्रकार (Types of Communication)
प्रभावशाली शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया को गत्यात्मक, सक्रिय एवं जीवन्त बनाने के लिए सम्प्रेषण की निरन्तरता या अनवरता आवश्यक होती है। सभी प्रकार के सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अभिसूचनाओं का संचार किया जाता है। कक्षा में शिक्षक पाठ्यवस्तु सम्बधी तथ्यों व प्रत्ययों को शाब्दिक तथा अशाब्दिक आदि सम्प्रेषणो द्वारा शिक्षार्थी तक पहुँचाता है।
शिक्षण में सम्प्रेषणों को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-
शाब्दिक सम्प्रेषण (Verbal Communication)
शाब्दिक सम्प्रेषण में भाषा का प्रयोग किया जाता है। यह सम्प्रेषण मौखिक रूप में वाणी द्वारा तथा लिखित रूप में शब्दों, संकेतों, विचार, भावनाओं आदि के द्वारा दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए प्रयोग किया जाता है। शाब्दिक सम्प्रेषण को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
- मौखिक सम्प्रेषण (Oral Communication) – इस सम्प्रेषण में वाणी द्वारा तथ्यों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। इसमें वार्ता, परिचर्चा, सामूहिक चर्चा, व्याख्या, कहानी, प्रश्नोत्तर आदि के माध्यम से अभिव्यक्ति की जाती है। इसमे सन्देश देने वाला तथा सन्देश ग्रहण करने वाला दोनों ही परस्पर आमने-सामने रहते हैं।
- लिखित सम्प्रेषण (Written Communication) – इसमें सन्देश देने वाला लिखित रूप में शब्दों या संकतों के द्वारा इस प्रकार से सन्देश प्रदान करता है कि सन्देश ग्रहण करने वाला व्यक्ति उसकी भावनाओं को समझ सके।
अशाब्दिक सम्प्रेषण (Non verbal Communication)
अशाब्दिक सम्प्रेषण में भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसमें वाणी संकेत, चक्षु सम्पर्क, मुख मुद्राओं एवं स्पर्श सम्पर्क आदि का प्रयोग किया जाता है।
- वाणी सम्प्रेषण – वाणी सम्प्रेषण में विचारों तथा भावनाओं की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत रूप से अथवा छोटे-छोटे समूहों में आमने-सामने रहकर वाणी द्वारा की जाती है; जैसे—“हाँ-हाँ”, “हाँ-हूँ” ‘हूँ-हूँ” कहना, सीटी बजाना, जोर से बोलना, चीखना मुस्कराना आदि।
- मुख मुद्राएँ एवं चक्षु सम्पर्क – कक्षा में चक्षु- सम्पर्क (Eye to eye contact) के द्वारा शिक्षक अपने छात्रों की मनःस्थिति का ही अन्दाजा लगा लेते हैं। संवेगात्मक स्थिति की अभिव्यक्तियों में छात्रों की मुख मुद्राएँ अहम् भूमिका निभाती हैं मुख मुद्राओं के माध्यम से प्रसन्नता, भय, क्रोध, शोक तथा आश्चर्य आदि का सम्प्रेषण आसानी से किया जा सकता है।
- स्पर्श सम्पर्क – इसमें स्पर्श को ही प्रमुख माध्यम बनाया जाता है। स्पर्श को माध्यम से व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ होते हैं। प्रशंसा की शाबासी, प्यार का एक चुम्बन अपने आप बहुत-सी भावनाओं, संवेदनाओं तथा विचारों की अभिव्यक्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
शैक्षिक सम्प्रेषण (Educational Communication)
शिक्षण के आधार पर सम्प्रेषण को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है –
- वैयक्तिक सम्प्रेषण (Individual Communication)
- सामूहिक सम्प्रेषण (Collective Communication)
वैयक्तिक सम्प्रेषण (Individual Communication)
जब शिक्षक बालक को अलग-अलग शिक्षण देता है तो इसे वैयक्तिक सम्प्रेषण कहते हैं।
ए. जी. मेलविन के अनुसार – “विचारों का आदान-प्रदान अथवा व्यक्तिगत वार्तालाप द्वारा बालकों को अध्ययन में सहायता, आदेश तथा निर्देश प्रदान करने के लिए शिक्षक का प्रत्येक बालक से पृथक्-पृथक् साक्षात्कार करना ।”
वैयक्तिक सम्प्रेषण के उद्देश्य (Aims of Individual Communication)
वैयक्तिक शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं
- शिक्षार्थियों में व्यक्तिगत विभिन्नताएँ होती हैं, उनकी रुचियों, अभिरुचियों आवश्यकताओं और मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखा जाता है।
- साधारण शिक्षार्थियों के लिए व्यक्तिगत शिक्षण आवश्यक है।
- शिक्षार्थियों की विशिष्ट योग्यताओं और व्यक्तित्व का विकास करना।
- शिक्षार्थियों को क्रियाशीलता का अवसर प्रदान करना।
वैयक्तिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of Individual Communication)
वैयक्तिक सम्प्रेषण के गुण निम्नलिखित हैं-
- यह विधि बाल-केन्द्रित होने के कारण मनोवैज्ञानिक है।
- यह विधि बालक को क्रियाशील बनाती है। इससे बालक अधिक ज्ञान अर्जित करने में समर्थ होता है।
- इस विधि में शिक्षक बालक के ऊपर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालने में समर्थ रहता है।
- इस विधि में शिक्षा व्यक्तिगत भिन्नताओं के अनुसार दी जाती है।
- इस विधि में शिक्षक, बालक पर व्यक्तिगत ध्यान देता है।
- इस विधि में बालक की प्रकृति के अनुसार शिक्षा देने की व्यवस्था है।
- यह विधि मन्द – बुद्धि एवं प्रखर बुद्धि दोनों प्रकार के छात्रों के लिए उपयोगी
वैयक्तिक सम्प्रेषण के दोष (Demerits of Communication)
वैयक्तिक सम्प्रेषण के कुछ दोष निम्नलिखित हैं
- यह विधि अधिक खर्चीली है अतः प्रत्येक समाज इसकी व्यवस्था नहीं कर सकता।
- प्रत्येक छात्र के लिए व्यक्तिगत रूप से शिक्षक का प्रबन्ध करना असम्भव है।
- इसमें शिक्षक और बालक दोनों के समय और शक्ति का अपव्यय होता है।
- यह विधि अव्यवहारिक है।
- इस विधि से बालकों में प्रेम, सहयोग, आत्मविश्वास, आत्म त्याग की भावन का विकास नहीं हो पाता।
- इस विधि में प्रेरणा, प्रोत्साहन आदि प्रतिस्पर्द्धा का अभाव रहता है।
- प्रत्येक बालक के लिए यह विधि उपयोगी नहीं है।
सामूहिक सम्प्रेषण (Collective Communication)
सामूहिक सम्प्रेषण का अर्थ कक्षा शिक्षण से है। सामूहिक सम्प्रेषण के लिए एक-सी मानसिक योग्यता वाले छात्रों के अनेक समूह बना लिए जाते हैं। इन समूहों को कक्षा कहते हैं । ये कक्षाएँ सामूहिक इकाइयाँ होती हैं। शिक्षक इन कक्षाओं में शिक्षण कार्य करते हैं। इस प्रकार सामूहिक शिक्षण में शिक्षक सामूहिक शिक्षण द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं।
सामूहिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of Collective Communication)
सामूहिक सम्प्रेषण के गुण निम्नलिखित हैं
- यह विधि सरल एवं व्यावहारिक है।
- इस विधि से शिक्षा देने में बालकों की तर्क शक्ति, कल्पना-शक्ति एवं चिन्तन शक्ति का विकास होता है।
- इस विधि में बालक सामूहिक भावना से कार्य करते हैं, उनमें प्रतियोगिता की भावना का विकास होता है।
- इससे बालकों में अनुकरण की भावना उत्पन्न होती है।
- यह विधि छात्रों में पढ़ने के लिए उत्साह पैदा करती है तथा उन्हें नवीन ज्ञान एवं सुझाव प्रदान करती है
- यह विधि संकोची एवं लज्जाशील बालकों के लिए अधिक उपयोगी है।
- कक्षा में विचारों का आदान-प्रदान होने के कारण बालकों की कार्यकुशलता बढ़ती है।
- यह विधि छात्रों को योग्य नागरिक बनने और भावी जीवन की तैयारी करने के अवसर प्रदान करती है।
सामूहिक सम्प्रेषण के दोष (Demerits of Collective Communication)
सामूहिक सम्प्रेषण के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं
- इस विधि में बालकों की रुचियों और आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा जाता है। अतः यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है ।
- यह विधि कक्षा केन्द्रित एवं शिक्षा बाल केन्द्रित है।
- इस विधि में शिक्षक निर्धारित पाठ्यक्रम के अन्तर्गत ही शिक्षण कार्य करता है। अतः इसका क्षेत्र संकुचित है।
- इस विधि में शिक्षक बालकों से व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं बना पाता । उससे बालकों की व्यक्तिगत कठिनाइयाँ दूर नहीं हो पाती है।
- इस विधि में शिक्षक सक्रिय एवं छात्र निष्क्रिय रहते हैं।
- इस विधि से प्रखर बुद्धि बालकों का हित नहीं हो पाता।
- इस विधि में बालकों के व्यक्तिगत भेदों पर ध्यान नहीं दिया जाता। सभी बालकों को एक समान ही शिक्षा दी जाती है।
सम्प्रेषण प्रक्रिया (Communication Process)
सम्प्रेषण एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानवीय सम्बन्ध स्थापित होते हैं, विकसित होते हैं, तथा दृढ़ होते हैं। इस प्रक्रिया में सन्देश भेजने वाला व्यक्ति सन्देश बनाता है उसे लिखता है फिर किसी माध्यम के द्वारा सन्देश को प्रेषित करता है । प्रेषित सन्देश जहाँ पहुँचता है वहाँ उसे पढ़कर डिकोड करते हैं और सन्देश जिसके लिए होता है उसे पहुँचाते हैं, आवश्यकता होने पर यह व्यक्ति सन्देश प्राप्ति की सूचना (Freedback) देता है।
सम्प्रेषण प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting to Communication Process)
- छात्र – वर्तमान में शिक्षण बाल केन्द्रित है जिसमें छात्र प्रमुख हैं। अतः छात्रों की आयु, मूल आकांक्षाएँ, बौद्धिक स्तर, मनोभावनाएँ शिक्षण सम्प्रेषण को प्रभावित करते हैं।
- शिक्षक का व्यक्तित्व – शिक्षण सम्प्रेषण में शिक्षक की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। शिक्षक का छात्रों के प्रति व्यवहार, उसका विषय पर स्वामित्व, निष्पक्षता, चरित्र, उसकी योग्यता आदि की छाप बालक पर पड़ती है।
- शिक्षण के उद्देश्य की जानकारी-शिक्षक को शिक्षण एवं विषय से सम्बन्धित शिक्षण के उद्देश्यों की जानकारी होनी चाहिए ताकि अपेक्षित शिक्षक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु वह पर्याप्त साधन एवं सुविधाएँ जुटा सके।
- विषय वस्तु का चयन – शिक्षार्थियों के लिए विषय वस्तु सरल, पठनीय एवं क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत होनी चाहिए। इससे सीखने का वातावरण सृजित होता है तथा आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
- पाठ्य योजना का निर्माण – पाठ्य योजना में शिक्षण सम्प्रेषण के उद्देश्य समाहित होते हैं अतः प्रभावकारी शिक्षण के लिए शिक्षण सम्प्रेषण में सुव्यवस्थित पाठ्य-योजना का निर्माण कर लेना चाहिए।
- उचित शिक्षण विधि एवं सहायक सामग्री का प्रयोग– शिक्षक को सदैव विषय प्रकरण एवं कक्षा स्तर के अनुकूल शिक्षण विधि का प्रयोग करना चाहिए। शिक्षण को प्रभावी बनाने लिए उचित सहायक सामग्री का प्रयोग करना चाहिए ।
- वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान – शिक्षण सम्प्रेषण के दौरान शिक्षक को शिक्षार्थी की व्यक्तिगत विभिन्नताओं; जैसे- बुद्धि-स्तर अभिवृत्ति, रुचि, रुझान, आदत एवं आकांक्षाओं आदि को ध्यान में रखते हुए शिक्षण कार्य करना चाहिए।
- कक्षा का वातावरण – सम्प्रेषण क्रिया के दौरान कक्षा का वातावरण भौतिक एवं सामाजिक रूप से व्यवस्थित होना चाहिए। कक्षा में उचित प्रकाश, वायु, ऊष्मा एवं सर्दी की उचित व्यवस्था तथा शिक्षार्थियों में पारस्परिक मैत्री भाव होना चाहिए।
- बालक का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य – शिक्षण के प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिए बालक का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए जिससे सीखने का वातावरण सृजित हो सके।
- विषयों के सह सम्बन्ध पर आधारित शिक्षण सम्प्रेषण – शिक्षण सम्प्रेषण में अन्य विषयों से सम्बन्ध जोड़ते हुए शिक्षण प्रदान करना चाहिए जिससे शिक्षण प्रभावोत्पादक हो जाय।
- सिखाने हेतु अभिप्रेरणा – अभिप्रेरणा शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है अतः शिक्षक को उचित शिक्षण सम्प्रेषण हेतु अच्छी शिक्षण पद्धति, युक्ति, विधि, सहायक सामग्री एवं विषय के सरल तत्वों का सम्प्रेषण करना चाहिए।
प्रभावी सम्प्रेषण के तरीके
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की सफलता के लिए प्रभावशाली सम्प्रेषण अत्यन्त आवश्यक है। अतएव सभी व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शिक्षक को चाहिए कि वह कक्षा सम्प्रेषण प्रक्रिया एवं छात्रों के साथ पारस्परिक क्रिया में कार्यकुशलता तथा प्रभावशीलता लाने के लिए स्थिर रूप से प्रयास करे। कक्षा सम्प्रेषण में प्रभावशीलता इन बातों पर निर्भर करती है
- सम्प्रेषण स्रोत का बल तथा गुणवत्ता,
- सम्प्रेषण सामग्री (विषय-वस्तु) की गुणवत्ता और स्वभाव,
- मार्ग अथवा सम्प्रेषण माध्यम (शाब्दिक तथा अशाब्दिक),
- प्राप्तकर्ताओं (विद्यार्थियों) का बल और गुणवत्ता, तथा
- वातावरणजन्य परिस्थितियाँ।
इसलिए कक्षा सम्प्रेषण में प्रभावशीलता लाने के लिए इसकी प्रक्रिया तथा रचना तन्त्र से जुड़े प्रत्येक कारक के योगदान से सम्बन्धित आवश्यक सुधार लाया जाना चाहिए। सम्प्रेषण में प्रभावशीलता प्रेषक के बल तथा गुणों पर काफी हद तक निर्भर करती है।
अतः सभी शिक्षकों को एक प्रभावशाली प्रेषक तथा सन्देश के प्रेषक के गुणों तथा विशेषताओं को ग्रहण करने का प्रयत्न करना चाहिए। कक्षा सम्प्रेषण में प्रभावशीलता लाने के लिए सम्प्रेषणकर्ता/शिक्षक के निम्नलिखित गुण और विशेषताएँ सहायक हैं
- विद्यार्थियों को पहुँचाये जाने वाली विषय-वस्तु के ऊपर शिक्षक का पूर्ण अधिकार होना तथा उसके द्वारा आधुनिक जानकारी रहना।
- ज्ञान की अभिलाषा करना।
- अधिगम सामग्री के उपर्युक्त चयन व प्रयोग में कार्यकुशलता।
- शिक्षण की कार्यप्रणालियों, युक्तियों, नियमों तथा सिद्धान्तों के प्रयोग में कार्यकुशलता।
- चिन्तन, तर्क, कल्पना, एकाग्रता, विश्लेषण, संश्लेषण, निर्णय एवं सामान्यी करण आदि चिन्तन कौशलों से जुड़ी कार्यक्षमता।
- व्याख्या, अभिव्यक्ति, कथन, वर्णन, प्रदर्शन करने एवं भावों का सम्प्रेषित करने की योग्यता से जुड़े अभिव्यक्ति कौशलों में कार्यक्षमता।
- भाषा का उपयुक्त वाणी और उच्चारण के साथ प्रयोग करने को निपुणता।
- श्रव्य दृश्य सहायक सामग्री, बहु-माध्यम तथा सम्प्रेषण के माध्यमों के उपयुक्त प्रयोग में निपुणता।
- कक्षा नियन्त्रण व प्रबन्ध में कार्यकुशलता।
- शिक्षार्थी तथा उसके लक्ष्य को समझने में कार्यकुशलता।
- अच्छा शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक स्वास्थ्य।
- उच्च बुद्धि, चरित्र और सामाजिक प्रभावशीलता।
- शिक्षण व्यवसाय तथा विद्यार्थियों के प्रति समर्पण।
- आत्म-विश्वास, उत्साह, परिश्रमी, निष्पक्षता, विनोद-प्रियता आदि गुणों से युक्त होना।
- आशावादी, लोकतान्त्रिक, प्रगतिशील, हमदर्द, स्नेही और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण ।
- विद्यार्थियों के साथ शिक्षक जैसा व्यवहार।
- सन्तुलित व्यक्तित्व।