शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था में मानसिक विकास

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शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था में मानसिक विकास

Table of Contents

मानसिक विकास (Mental Development)

जन्म के समय बच्चे का मस्तिष्क अपरिपक्व होता है। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे उसका मानसिक विकास होता है। मानसिक विकास अर्थात् समझने की शक्ति, कल्पना शक्ति, स्मरण शक्ति, तर्क शक्ति, बुद्धि आदि का विकास होता है। विकास की यह प्रक्रिया गर्भाधान से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है।

मानसिक विकास का अर्थ (Meaning of Mental Development)

मानसिक विकास का आशय ज्ञान भण्डार में वृद्धि से है। मानसिक विकास की प्रक्रिया आजीवन चलती रहती है। मानसिक विकास का अर्थ मानसिक शक्तियों का उदय होना तथा व्यक्ति में उस क्षमता का विकास होना है, जिससे वह परिस्थितियों के अनुकूल अपने को समायोजित कर सके। मानसिक विकास के अन्तर्गत समझने की शक्ति, स्मरण करने की शक्ति, ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता, विचार, तर्क, समस्या-समाधान करने की शक्ति आदि सम्मिलित है। मानसिक विकास शक्ति में होने वाली सूझ-बूझ है, जिसके परिणामस्वरूप उसके व्यवहार में परिमार्जन होता हैं। 

मानसिक पक्ष (Aspects Mental Development)

मानसिक विकास कई प्रक्रियाओं का पुंज होता है। मनोवैज्ञानिकों ने इसके अन्तर्गत निम्न योग्यताओं को सम्मिलित किया है –

  1. संवेदन (Sensation)
  2. निरीक्षण (Observation)
  3. कल्पना (Imagination)
  4. चिन्तन (Thinking)
  5. निर्णय (Judgement) 
  6. बुद्धि (Intelligence)
  7. रूचि एवं अभिव्यक्ति (Interest and Attitude))
  8. प्रत्यक्षीकरण (Perception)
  9. ध्यान (Attention)
  10. तर्क (Reasoning)
  11. सीखना (Learning)
  12. स्मरण- विस्मरण (Remembering and Forgetting)

शैशवावस्था में मानसिक विकास (Mental Development in Infancy)

शिशु के मानसिक विकास का शारीरिक विकास से गहरा सम्बन्ध है। आयु में वृद्धि के साथ-साथ मानसिक विकास भी होता है। मानसिक विकास का तात्पर्य शिशुओं में उस दक्षता के विकसित होने से है, जिससे वह वातावरण का ज्ञान प्राप्त करता है और समायोजन करने में सफल होता है। शैशावावस्था में मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। 

शैशावावस्था में मानसिक विकास की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. प्रथम माह में मानसिक विकास

जन्म के समय शिशु का मस्तिष्क कोरी स्लेट के समान होता है। शिशु अपनी भूख, प्यास, नींद एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए रोने-चिल्लाने, हाथ-पैर पटकने, जोर की आवाज करने जैसी क्रियाएं करता है।

2. द्वितीय माह में मानसिक विकास

द्वितीय माह में शिशु ध्वनि की तरफ आकर्षित होने लगता है। वस्तुओं को ध्यानपूर्वक देखता है तथा वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति चौकन्ना रहता है।

3. चौथे माह में मानसिक विकास

 चौथे माह में शिशु दी जाने वाली वस्तुओं को पकड़ने का प्रयास करता है। माँ तथा अन्य प्रियजनों को देखकर मुस्कराता है।

4. छठें माह में मानसिक विकास

वस्तुओं को पकड़कर मुँह में डालना, अपना नाम सुनकर समझना सहारे से बैठना, ध्वनि करना आदि। 

5. आठवें माह में मानसिक विकास

हाथ से खिलौना या कोई वस्तु छीनने पर रोना, अपनी रूचि की वस्तु या खिलौना चुनकर उठाना, घुटने के बल चलना आदि।

6. दसवें माह में मानसिक विकास

दसवे माह में शिशु आसानी से घुटनों के बल चलने लगता है एवं अपने वातावरण को पहचानने लगता है। वस्तुओं को छूने, इधर-उधर करके एवं तोड़ने-फोड़ने में रूचि रखने लगता है।

7. प्रथम वर्ष में मानसिक विकास

छोटे-छोटे शब्दों को बोलना, धीरे-धीरे चलने का प्रयास करना, माता-पिता एवं भाई-बहन की क्रियाओं का अनुकरण करना आदि। 

8. द्वितीय वर्ष में मानसिक विकास

दो वर्ष की आयु में शिशु दो-तीन शब्दों के वाक्य बोल लेता है। नाम लेने पर वस्तुओं को बताता है। पूछने पर आँख, कान, नाक, हाथ की तरफ संकेत करता है। अपना नाम बताता है। चाकलेट पर लिपटा कागज खोल देता है।

9. तृतीय वर्ष में मानसिक विकास

तीन वर्ष की आयु में शिशु संख्याओं को दोहराता है, वस्तुओं को सही स्थान पर रखता है। पत्रिका में छपे चित्र पहचान लेता है।

10. चतुर्थ वर्ष में मानसिक विकास

चार-पाँच तक गिनती गिन लेना, दो-तीन संख्याओं का अर्थ समझना, छोटी-बड़ी रेखा में अन्तर समझना, अक्षर लिखना, वस्तुओं को क्रम से रखना आदि।

11. पंचम वर्ष में मानसिक विकास

पाँचवें वर्ष तक उसकी ज्ञानेन्द्रियों का विकास क्रमशः होता रहता है जैसे ठण्डी गर्म वस्तुओं का ज्ञान होना, लाल-हरा रंग बताना, हल्के भारी का ज्ञान होना आदि।

अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्रथम 6 वर्षों में शिशु मूल प्रवृत्ति से प्रेरित व्यवहार करता है। वातावरण का ज्ञान उसे ज्ञानेन्द्रियों द्वारा होता है। देखना, सुनना, स्पर्श, स्वाद तथा सूँघने से संबंधित विकास होता रहता है।

बाल्यावस्था में मानसिक विकास (Mental Development in Childhood)

बाल्यावस्था में मानसिक विकास की गति शैशावावस्था की तुलना में कम होती है। क्रो & क्रो के अनुसार- “जब बालक 6 वर्ष का हो जाता है, तब उसकी मानसिक योग्यताओं का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है।” 

बाल्यावस्था में बालकों के मानसिक विकास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. छठें वर्ष में मानसिक विकास

बालक आसान प्रश्नों के उत्तर दे सकता है। बिना रूके 15-20 तक गिनती सुना देता है। अखवार, पत्रिका में बने चित्रों के नाम बता सकता है।

2. सातवें वर्ष में मानसिक विकास

छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन कर सकता है। तमाम वस्तुओं में समानता एवं अन्तर बता सकता है। जटिल वाक्यों का प्रयोग कर सकता है। 5-6 अंकों की संख्या दोहरा सकता है।

3. आठवें वर्ष में मानसिक विकास

आठवें वर्ष में बालक छोटी-छोटी कविताएँ तथा कहानियाँ याद कर लेता है। उसमें कहानी से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देने की क्षमता विकसित हो जाती है। वह साधारण समस्याओं का समाधान खोज लेता है। 

4. नवें वर्ष में मानसिक विकास

नौ वर्ष का बालक समय, दिन, तारीख, वर्ष आदि बताने लगता है, रूपये-पैसे गिन लेता है।

5. दसवें वर्ष में मानसिक विकास

दस साल का बालक द्रुत गति से बोल लेता है। दैनिक जीवन की नियमित दिनचर्या का ज्ञान भली-भाँति हो जाता है, अपने व्यक्तिगत कार्य स्वयं कर सकता है।

6. ग्यारहवें वर्ष में मानसिक विकास

इस उम्र तक बालक में तर्क, जिज्ञासा, निरीक्षण-शक्ति का विकास हो जाता है। वह प्रत्यक्ष अवलोकन करके पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़े, कलपुर्जों आदि वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करता है। वह भिन्न-भिन्न वस्तुओं में तुलना करता, कठिन शब्दों की व्याख्या करना सीख जाता है।

7. बारहवें वर्ष में मानसिक विकास

इस उम्र में बालक विभिन्न परिस्थितियों की वास्तविकता जानने की कोशिश करता है। उसमें तर्क और समस्या समाधान की योग्यता का विकास हो जाता है।

अतः स्पष्ट है कि बाल्यावस्था में बालक-बालिकाओं की ज्ञानेन्द्रियाँ परिपक्व होने लगती हैं। चिन्तनशक्ति, तर्कशक्ति व निर्णयशक्ति विकसित हो जाती है, वह पढ़ने-लिखने, खेल-कूद आदि में रूचि लेने लगता है।

किशोरावस्था में मानसिक विकास (Mental Development in Adolescence)

किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन की भांति मानसिक परिवर्तन भी तीव्र गति से होता है। वुडवर्थ के अनुसार– “मानसिक विकास 15 से 20 वर्ष की आयु में अपनी उच्चतम सीमा पर पहुंच जाता है।” 

किशोरावस्था में मानसिक विकास की प्रमुख विशेषताओं को निम्न रूपो में स्पष्ट किया जा सकता है –

1. मानसिक योग्यताएँ (Mental Capacities)

शारीरिक और मानसिक विकास के साथ-साथ मानसिक योग्यताओं में वृद्धि होती है। किशोरों में सोचने समझने, विचार करने तथा समस्याओं का समाधान करने की मानसिक योग्यताएँ विकसित हो जाती हैं। ध्यान, चिन्तन, तर्क, स्मरण आदि की योग्यताएँ अपनी अधिकतम सीमा तक पहुंचने लगती हैं। सोलह साल की उम्र तक किशोर-किशोरियों का लगभग पूर्ण मानसिक विकास हो जाता है।

2. भाषा (Language)

किशोरावस्था में शब्द-भण्डार विस्तृत हो जाता है। पढ़ने-लिखने की योग्यता बढ़ने के कारण किशोर कहानी, उपन्यास, पत्रिकाओं एवं अखबार में रूचि रखने लगता है। चिन्तन, तर्क, कल्पनाशक्ति के विकास का भी भाषा पर प्रभाव पड़ता है। भाषा विकास पर सामाजिक सम्पर्क और विद्यालय वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है।

3. कल्पना शक्ति ( Imagination)

किशोरों में कल्पना शक्ति की अधिकता होती है, जिसके कारण उनमें दिवास्वप्न देखने की प्रवृत्ति जागृत हो जाती है। किशोरो की अपेक्षा किशोरियों में कल्पना शक्ति अधिक होती है। वे कल्पना का प्रयोग संगीत, साहित्य, कलात्मक एवं रचनात्मक कार्यों में करती हैं,

4. रूचियों का विकास

किशोरावस्था में रूचियों का बहुमुखी विकास होता है। शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, अच्छा भोजन, वेश-भूषा, चरित्र, अध्ययन, चलचित्र, दूरदर्शन, साहित्य आदि में विशेष रूचि होती है। यह रूचि सीखने में मदद करती है।

5. सीखने की क्षमता का विकास

किशोरावस्था में जिज्ञासा की प्रबलता के कारण किशोर किशोरियाँ शीघ्र सीखने का प्रयास करतें हैं। वे सैद्धान्तिक, व्यावहारिक, वैज्ञानिक तथा यांत्रिक सभी दर्शनों को सीखने में रूचि दिखाते हैं। इस अवस्था में उनमें सीखने की क्षमता का अधिक विकास होता है।

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factor Affecting Mental Development)

विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले मानसिक विकास को कई कारक प्रभावित करतें हैं। परिवार वातावरण, समाज और अन्य परिस्थितियों से सम्बन्धित ये कारक मानसिक विकास की गति को प्रभावित करतें हैं। 

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक अधोलिखित हैं-

1. वंशानुक्रम (Heredity)

मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से सिद्ध हो चुका है कि व्यक्ति को वंशानुक्रम से अनेक मानसिक योग्यताएँ तथा गुण प्राप्त होते हैं। जिन्हें वातावरण के द्वारा परिवर्तित किया जाना असम्भव है। वास्तव में कोई भी व्यक्ति उससे अधिक विकास नहीं कर सकता जितना उसका वंशानुक्रम सम्भव बनाता है।

गेट्स तथा अन्य के अनुसार– “किसी व्यक्ति का उससे अधिक विकास नहीं हो सकता है, जितना कि वंशानुक्रम सम्भव बनाता है।”

2. पारिवारिक वातावरण

बालक के मानसिक विकास पर परिवार के वातावरण का गहरा प्रभाव पड़ता है। शान्त तथा सुखद वातावरण में बालक का मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। इसके विपरीत दुःखद व कष्टपूर्ण वातावरण में बालक का मानसिक विकास मन्द गति से होता है।

3. परिवार की आर्थिक स्थिति

बालक के मानसिक विकास पर परिवार की आर्थिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है। अच्छी आर्थिक स्थिति वाले परिवार के बालक को मानसिक विकास के लिए अच्छी सुविधाएँ, परिस्थितियाँ तथा अवसर उपलब्ध होते हैं। फलस्वरूप उनका मानसिक विकास अच्छे ढंग से होता है।

4. स्वास्थ्य

शारीरिक विकास और मानसिक स्वास्थ्य में चोली-दामन का सम्बन्ध है। मानसिक विकास के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना आवश्यक है। शारीरिक दृष्टि से सक्षम बालक, अस्वस्थ बालकों की तुलना में मानसिक क्षमताओं का अधिक विकास कर लेते हैं।

अरस्तू के अनुसार “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।”

5. माता-पिता की शिक्षा

बालक के मानसिक विकास पर माता-पिता की शिक्षा का भी असर पड़ता हैं। शिक्षित माता-पिता के बालक मानसिक विकास में रूचि लेते हैं तथा उसे सही रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। कम पढ़े-लिखे माता-पिता बालकों के मानसिक विकास की तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते हैं।

6. विद्यालय

विद्यालय के वातावरण का बालक के मानसिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है। विद्यालय का उत्तम वातावरण बालको को मानसिक विकास के अवसर प्रदान करता है, जिससे उनका मानसिक विकास अच्छे ढंग से होता है। इसके विपरीत प्रतिकूल वातावरण युक्त विद्यालय बालकों की मानसिक शक्तियों को कुंठित कर देता है।

7. अध्यापक का व्यवहार

अध्यापक का व्यवहार बालक के मानसिक विकास का मुख्य घटक होता है। यदि अध्यापक शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञाता है और वह छात्रों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार तथा उपयुक्त शिक्षण-विधियों का प्रयोग करता है, तो छात्रों का मानसिक विकास उचित दिशा में होता है।

8. समाज

जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव समाज में रहता है। समाज से अलग मानव का अस्तित्व ही नहीं है। समाज का वातावरण बालक के मानसिक विकास को काफी हद तक प्रभावित करता है। यदि समाज अपने भावी नागरिकों के लिए अच्छे विद्यालय, पुस्तकालय, वाचनालय, मनोरंजन के साधन आदि की व्यवस्था करता है तो बालकों का मानसिक विकास समुचित ढंग से होता रहता है। सुविधाओं के अभाव में बालकों के मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती है।

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