न्यूनतम अधिगम स्तर तथा अपेक्षित अधिगम

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Minimum Level Of Learning And Expected Learning Outcome
अधिगम क्या है? न्यूनतम अधिगम की आवश्यकता, न्यूनतम अधिगम स्तर पर लक्ष्य हेतु शिक्षण तथा शिक्षण व्यवस्था में सुधार, आदि विषय के बारे में पढ़ेंगे।
न्यूनतम अधिगम स्तर तथा अपेक्षित अधिगम
न्यूनतम अधिगम स्तर तथा अपेक्षित अधिगम

न्यूनतम अधिगम स्तर तथा अपेक्षित अधिगम

वर्तमान समय में बढ़ती हुई जनसंख्या और घटते हुए शिक्षण साधनों को ध्यान में रखते हुए 1986 नयी नीति में यह निर्धारित किया गया कि बालकों को लिए प्रत्येक स्तर पर न्यूनतम स्तर निर्धारित किया जाए, जिससे सभी छात्र एक निश्चित मात्रा में ज्ञान प्राप्त कर सकें और इससे होने वाले अपव्यय एवं अवरोधन में सुलभता प्राप्त होगी तथा शिक्षा के स्तर में एक परिवर्तन होगा। शिक्षा में अधिगम सुचारु एवं परिवर्तन एवं प्रभावी के साथ गुणात्मक सुधार होगा।

न्यूनतम अधिगम स्तर क्या है ? इससे पहले यह जानना अति आवश्यक है कि है अधिगम क्या है? क्योंकि न्यूनतम अधिगम स्तर अधिगम से जुड़ा हुआ है।

अधिगम क्या है?

मनोवैज्ञानिकों के अनेक अनुसन्धानों के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि बालक का जब जन्म होता है तो वह कोरे कागज के समान होता है। भौतिक संसार के सम्पर्क में आता है अर्थात् जन्म के तुरन्त बाद वह सीखने लगता है उसके सीखने के साधन परिवार के सदस्य, वातावरण में उपस्थित उद्दीपक तथा अन्य सम्पर्क आने वाली परस्थितियाँ विद्यालय, मन्दिर, मस्जिद, समाज आदि से अनुभव प्राप्त करता है इन अनुभवों का प्रयोग अपने जीवन में उद्देश्य प्राप्ति हेतु करता है। इस प्रकार जन्म से लेकर मृत्यु तक जो सीखता एवं अनुभव प्राप्त करता है अधिगम कहलाता है।

अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति की जाने वाली वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति को उद्देश्य प्राप्ति में सहायता देती है और भविष्य में भी लाभान्वित करती है।

न्यून्तम अधिगम स्तर का सम्प्रत्यय

‘न्यूनतम अधिगम स्तर तीन शब्दों के योग से बना है। यदि तीनों का अर्थ अलग-अलग समझ लिया जाए तो उसका अभिप्राय स्पष्ट हो जायेगा। 

न्यून्तम

न्यून्तम शब्द का अभिप्राय कौशलता के उस अंश से है जो किसी निश्चित कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा निश्चित समय में अर्जित किया जाता है। 

अधिगम

अधिगम शब्द का अर्थ है सीखना अर्थात् बालक के व्यवहार से ऐसे परिवर्तन जिससे वह स्वयं को समाज में समायोजित कर सके।

स्तर

स्तर शब्द का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें बालक निश्चित समय में उपलब्धि प्राप्त करता है। अर्थात् कक्षा 6 में पढ़ने वाला छात्र का स्तर कक्षा 6 के पाठ्यक्रम को तैयार करना या उसमें निपुण होना।

उपरोक्त तीनों शब्दों की व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता हैं कि न्यूनतम शैक्षिक अधिगम स्तर क्या है।

न्यूनतम अधिगम स्तर की परिभाषा

“न्यूनतम अधिगम स्तर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें यह निर्धारित किया जाता है कि बच्चे को अमुक या किसी निश्चित स्तर पर कम-से-कम कितना सीखना चाहिए।”

उपरोक्त परिभाषा का स्पष्टीकरण एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। 

उदाहरण – राजू कक्षा 8 का छात्र है और इसके लिए बोर्ड द्वारा यह निश्चित किया गया है कि कम से कम 33% अंक प्राप्त करने वाला छात्र उत्तीर्ण होगा। तो उस बालक के द्वारा सत्र में मेहनत करके 8वीं के स्तर को पास करने के लिए 33% अंक प्राप्त करना अनिवार्य होगा। यही न्यूनतम अधगम स्तर कहलायेगा।

वर्तमान समय में यह देखा जा रहा है कि अधिगम का न्यूनतम स्तर गिरता ही जा रहा है। छात्रों में पढ़ने के प्रति रुचि का अभाव के परिणामस्वरूप कक्षाओं में उस गुणात्मक सुधार की सम्भावना आती जा रही हैं। कहीं-कहीं विद्यालयों में अधिगम स्तर ऊँचा है और कहीं-कहीं अधिगम स्तर निम्न है। उसका क्या कारण है? इसीलिए चाहिए कि सभी के लिए समानता को ध्यान में रखकर एक स्तर को निर्धारित किया जाएँ, जिससे अपव्यय एवं अवरोधन जैसी ज्वलन्त समस्याओं का समाधान आसान से हो जाए।

न्यूनतम अधिगम की आवश्यकता

न्यून्तम अधिगम स्तर की आवश्यकता निम्न कारणों से हुई है – 

अपव्यय एवं अवरोधन

प्राथमिक स्तर की अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या अंग्रेजों के समय से चली आ रही है। अधिकांशतः यह देखा जाता है कि प्राथमिक स्तर पर छात्र एक कक्षा में फेल होने के कारण या तो विद्यालय छोड़ देते हैं या फिर एक पुरानी कक्षा की ही शोभा बढ़ाते रहते हैं। इस समस्या के उन्मूलन के विषय में हटोग समिति ने जोरदार विरोध करते हुए इसके समाधान प्रस्तुत किये। लेकिन यह समस्या आज भी बनी हुई है अतः इस समस्या से छुटकारा पाने हेतु आवश्यक है कि शिक्षा में छात्रों के लिए न्यून्तम अधिगम स्तर का निर्माण किया जाए।

छात्रों के स्तर में अन्तर

न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता छात्रों के स्तर में अन्तर पाये जाने के कारण भी स्वीकार की जा रही है। एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय, एक जिले से दूसरे जिले तथा एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश के शैक्षिक स्तरों में अन्तर पाया जाता है। अतः जिस प्रकार शैक्षिक अवसरों में समानता का अधिकार है। उसी प्रकार शिक्षा के न्यूनतम अधिगम स्तर में समानता होनी चाहिए जिसके परिणामस्वरूप छात्रों के स्तर तथा उत्तीर्ण होने की संख्या में वृद्धि की जा सकती है।

शिक्षा का गिरता हुआ स्तर

जब तक शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में न्यूनतम अधिगम स्तर लागू नहीं होगा तथा शिक्षा के गिरते हुए स्तर में सुधार सम्भव नहीं है। प्राथमिक स्तर के बालक को किस स्तर पर किन उद्देश्यों को प्राप्त करना, कैसे प्राप्त किया जाना इसका निर्धारण आवश्यक है इसलिए न्यूनतम शैक्षिक अधिगम स्तर होना चाहिए।

उपरोक्त समस्या को ध्यान में रखकर 1986 की शिक्षा नीति में क्रियान्वयन योजना में इस बात को रखा गया कि प्रत्येक स्तर पर छात्रों के लिए अधिगम स्तर निर्धारित किये जाएँ तथा उस स्तर पर उस योग्यता को प्राप्त करने के लिए पूर्ण प्रयास करना चाहिए, इसके लिए इस तथ्य का निरीक्षण करना भी आवश्यक है कि हमारे द्वारा निर्धारित जो न्यूनतम स्तर तैयार किया है उसे छात्र पा रहे हैं या नहीं। यदि नहीं तो उनके कारणों का पता लगाकर उन्हें दूर कर उनका समाधान करना परम आवश्यक है।

न्यूनतम अधिगम स्तर लागू करते समय ध्यान देने योग्य बातें- 

प्रस्तर पर न्यूनतम अधिगम स्तर लागू करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

  • छात्रों की आयु।
  • छात्रों की कक्षा का स्तर।
  • छात्रों की भौगोलिक परिस्थितियाँ।
  • छात्रों का मनोवैज्ञानिक स्तर।
  • विश्व में इस स्तर के अन्य देशों का स्तर।
  • छात्रों के मानसिक विकास के अनुरूप।
  • छात्रों की परिस्थितियों, साधन एवं सुविधाओं के अनुसार। 
  • छात्रों के लिए निश्चित स्तर का निर्धारित उद्देश्य।
  • निर्धारित उद्देश्यों का मूल्यांकन एवं निरीक्षण।
  • अप्राप्त उद्देश्य मिलने पर उनका समाधान प्रस्तुत करना। 

अपेक्षित अधिगम स्तर की संकल्पना (Concept of Expected Learning Level)

वय वर्ग 6-14 को बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करके उसे मौलिक अधिकार की श्रेणी में लाया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में किये गये अनेकों प्रयासों से नामांकन व ठहराव में तो पर्याप्त वृद्धि हुई परन्तु विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता की दृष्टि से छात्रों का अपेक्षित उपलब्धि स्तर अत्यन्त चिन्ताजनक है। अतः इसके लिए यह आवश्यक समझा गया है कि प्रारम्भिक शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर सीखने के कुछ ऐसे स्तर/दक्षताएँ निर्धारित किये जाएँ जिन्हें प्रत्येक विद्यार्थी उस स्तर तक अवश्य जाने।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में इस बात पर बल दिया गया कि कोई बच्चा चाहे गाँव में पढ़े या शहर में विद्यालय में हो अथवा अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र में, सरकारी विद्यालय में शिक्षा पाए या गैर-सरकारी में सभी के लिए जितना जानना और समझना जरूरी है इसका भी निर्धारण कर लिया जाए। दूसरे शब्दों में, स्कूली शिक्षा के प्रत्येक स्तर के लिए सीखने के न्यूनतम स्तर निर्धारित किये जायें जिससे सभी छात्र निर्धारित दक्षताओं को प्राप्त कर सकें। इसे न्यूनतम अधिगम स्तर कहा गया है। संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 में इस अनिवार्य अधिगम स्तर कहा गया है।

न्यूनतम अधिगम स्तर के निर्धारण हेतु 1990 में गठित दवे समिति द्वारा प्राथमिक स्तर पर (कक्षा 1 से 5 तक) भाषा, गणित व पर्यावरण अध्ययन हेतु अधिगम के न्यूनतम अपेक्षित अधिगम स्तरों का निर्धारण किया गया जिन्हें उस कक्षा के अंत तक प्रत्येक प्राप्त कर लें। 

अपेक्षित अधिगम स्तर का अर्थ (Meaning of Expected Learning Level)

अपेक्षित अधिगम स्तर तीन शब्दों से मिलकर हुई है- अपेक्षित निर्धारित न्यूनतम दक्षताएँ, जिनकी प्राप्ति की आशा/ अपेक्षा की जाए। इसका सम्बन्ध दक्षताओं के उस अंश से है जो निर्धारित कक्षा के शिक्षार्थियों को निश्चित समय में अर्जित कर लेना है। दक्षता का अर्थ किसी कार्य विशेष को कुशलतापूर्वक कर लेने की क्षमता से है।

अधिगम का अर्थ है “सीखना अर्थात् ज्ञान, समझ, मूल्य, कौशल व व्यवहार में होने वाला परिवर्तन।

स्तर उपलब्धि या सम्प्राप्ति का स्तर

शाब्दिक विश्लेषण के आधार पर अपेक्षित अधिगम स्तर का अर्थ है कि प्रत्येक कक्षा व विषय के लिए निर्धारित दक्षताओं को प्रत्येक छात्र निश्चित समय में अवश्य प्राप्त सीखने की अधिकतम सीमा निश्चित नहीं की जा सकती परन्तु अपेक्षित स्तर तक को पहुंचाने हेतु बच्चों को उनकी क्षमता/ रुचि गति के अनुसार सीखने के उपर्युक्त अवसर व वातावरण अवश्य सुलभ कराया जाना चाहिए। 

अधिगम स्तर के उद्देश्य (Aims of Expected Learning Level)

व्यक्तित्व विकास का माध्यम व राष्ट्रीय विकास की धुरी प्रारम्भिक शिक्षा है। अतः इस स्तरपर गुणवत्ता परक शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु अपेक्षित अधिगम स्तर की संकल्पना की गयी जिसके माध्यम से लिंग, जाति व धर्म के भेदभाव के बिना सभी वर्गों की पहुँच शिक्षा तक सम्भव हो सके। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं- 

  • सभी छात्रों को बिना किसी भेदभाव के गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करना तथा उन्हें निर्धारित कुशलताओं में पारंगत बनाना।
  • छात्रों में समान शैक्षिक गुणवत्ता की प्राप्ति सुनिश्चित करना। 
  • विविध छात्रों के उपलब्धि स्तर की विषमताओं को समाप्त करना।
  • अध्यापक के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करके उसके कार्य को दिशा प्रदान करना अर्थात् उसका कार्य छात्रों को निर्धारित योग्यताओं के स्तर तक पहुंचाना है न कि सिर्फ पाठ्यक्रम को पूर्ण करना।
  • अध्यापक के शिक्षण-अधिगम की उपयुक्त विधि के चयन में सहायता करना। 
  • विद्यार्थियों की उपलब्धि का मूल्यांकन करने की उपयुक्त पद्धति चुनने में अध्यापक की सहायता करना।
  • छात्रों की कठिनाइयों के निराकरण में शिक्षक का मार्गदर्शन करना। 

अपेक्षित अधिगम स्तर की सम्प्राप्ति में अधिगम अनुभवों का संयोजन (Connection of Learning Experiences in Achieving of Expected Learning Level)

सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षक छात्रों को सीखने के विविध अवसर उपलब्ध कराकर उनके अनुभवों को समृद्ध है क्योंकि अनुभव के समृद्ध होने पर ही सीखने की सफलता निर्भर है। सीखने की अवधि में तथा उसके पश्चात् छात्रों द्वारा उस विषय से सम्बन्धित प्राप्त अनुभव ही अधिगम अनुभव कहलाते हैं। सीखने का एक समान पर्यावरण / परिस्थिति / परिवेश उपलब्ध कराने पर भी एक कक्षा के दो छात्रों के अधिगम अनुभव भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कक्षा-कक्ष में शिक्षक निम्न क्रियाकलापों के माध्यम से छात्रों को सीखने के उपयुक्त अवसर प्रदान कर सकता है-

  • पाठ पढ़वाना
  • विषय सम्बन्धी लिखित कार्य करवाना
  • विचार-विमर्श करना
  • निरीक्षण करना
  • वर्गीकरण करना
  • तुलना करना
  • निष्कर्ष निकालना
  • वाद-विवाद / तर्क करना 
  • मौखिक प्रश्न पूछना
  • गतिविधि कराना
  • अभ्यास कार्य कराना
  • खेल खिलाना (शैक्षिक व मनोरंजनात्मक) 
  • समूह कार्य करवाना

रुचिपूर्ण तरीके से आयोजित उपरोक्त क्रियाकलापों के माध्यम से छात्रों में अधिगम प्रतिफल के रूप में ज्ञान, बोध, अनुप्रयोग, कुशलताओं, रुचियों, मनोवृत्तियों तथा आदशों का विकास होता है। अपेक्षित अधिगम स्तर के अन्तर्गत कक्षावार / विषयवार निर्धारित दक्षताओं में बच्चों को कुशल बनाने के लिए शिक्षक को ऐसे उपयोगी तौर-तरीके अपनाना चाहिए जो उनकी रुचि, आवश्यकता, पूर्व ज्ञान व परिवेश से जुड़े हों तथा जिनसे उनमें अपेक्षित क्षमता की सम्प्राप्ति भली प्रकार हो सके।

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