
पुस्तपालन तथा लेखाकर्म के उद्देश्य (Objectives of Book-keeping and Accountancy)
Objectives of Book-keeping and Accountancy: Hello Readers! जैसा की आपको पता है हम वाणिज्य (Commerce) विषय के पाठ्यक्रम को कवर कर रहे है आपको बता दे की ये निम्न परीक्षाओ में पुछा जा सकता है जैसे- 1st Grade, Co-operative Bank, Jr. Accountant NTA- net, C.A. Foundation, TGT, PGT & Other Exams, अभी तक हमने निम्न टॉपिक्स पढ़ चुके है – लेखांकन की शब्दावली-Terminology of Accounting, पुस्तपालन या बहीखाता (Book-keeping) | अर्थ, परिभाषा, विशेषताए, लेखाशास्त्र या लेखाकर्म (Accountancy) | लेखांकन (Accounting) | अर्थ, परिभाषा, मूल तत्त्व, पुस्तपालन और लेखाकर्म में सम्बन्ध, पुस्तपालन तथा लेखाकर्म में अन्तर.
पुस्तपालन (बहीखाता) तथा लेखाकर्म के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित है –
पूँजी तथा आहरण का ज्ञान
अपनो लेखा पुस्तकों से व्यवसायी को इन बातों को समुचित जानकारी प्राप्त हो जाती ई-
- प्रारम्भ में लगाई गई पूंजी में कितनी कमी या वृद्धि हुई है.
- उसने समय-समय पर निजी खर्चों के लिए कितनी धनराशि व्यवसाय से निकाली है,
- आवश्यकता पड़ने पर उसने कितनी अतिरिक्त पूंजी व्यवसाय में लगाई है,
- हिसाबी वर्ष के अन्त में कुल कितनी पूंजी नकद तथा सम्पत्तियों के रूप में व्यवसाय में लगी हुई थी इत्यादि।
रोकड़ शेष का ज्ञान
दैनिक लेन देन सम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न करने के लिए व्यवसायी को नकद धनराशियो की आवश्यकता पड़ती रहती है। बहीखातों से नकदी तथा बैंक में जमा राशि का पूर्ण ज्ञान होता रहता है।
क्रय-विक्रय तथा स्टॉक का ज्ञान
समुचित ढंग से रखे गए बहीखातों से कोई व्यवसायी आसानी से यह ज्ञात कर सकता है कि
- उसकी बिक्री घट रही है या बढ़ रही है,
- उसने वर्ष में कितने मूल्य का माल नकद तथा उधार बेचा
- वर्ष के अन्त में अन्तिम रहतिए (stock) के रूप में कितना माल शेष है
- किसी तिथि-विशेष पर बचे हुए रहतिया की गणना भी सरलता से की जा सकती है इत्यादि।
आय तथा व्यय का ज्ञान
नियमानुसार तैयार किए गए लेखों से व्यवसायी को अपनी आय तथा व्यय की मदो का ठीक-ठीक ज्ञान हो जाता है। इससे वह अपने व्यवसाय के विकास तथा विस्तार के लिए योजना बना सकता है।
देनदारियों तथा लेनदारियों का ज्ञान
कोई व्यवसायी अपने बहीखातों से यह ज्ञात कर सकता है कि उसे कितनी धनराशि अपने देनदारों (debtors) से प्राप्त करनी है तथा कितनी धनराशि का उसे अपने लेनदारों (creditors) को भुगतान करना है। व्यवसाय की सफलता के लिए देनदारियों तथा लेनदारियों का निरन्तर ज्ञान रखना आवश्यक होता है।
सम्पत्ति तथा दायित्व का ज्ञान
व्यवसाय के अन्तर्गत मशीन, फर्नीचर, साइकिल आदि सम्पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक वर्ष हास (depreciation) के रूप में एक निश्चित धनराशि सम्पत्तियों के मूल्य में से कम कर दी जाती है। इससे प्रत्येक वर्ष सम्पत्तियों के वास्तविक मूल्य का ज्ञान होता रहता है। इसी प्रकार बहीखातों से व्यवसायी को अपने दायित्वो (liabilities) का ज्ञान होता रहता है।
लाभ-हानि का ज्ञान
लेखाकर्म के अन्तर्गत प्रत्येक वर्ष व्यवसाय का लाभ तथा हानि खाता तैयार किया जाता है जिससे व्यवसायी को यह ज्ञात हो जाता है कि उसे किसी निश्चित व्यावसायिक अवधि में कितना लाभ अथवा हानि हुई है।
लाभ अथवा हानि के कारणों का ज्ञान
अपने लेखों का अध्ययन करके कोई व्यवसायी प्राप्त होने वाले लाभ के कारणों की जानकारी प्राप्त करके अपने व्यवसाय की उन्नति के लिए समुचित कदम उठा सकता है। इसके विपरीत, हानि होने पर वह अपने लेखों का अध्ययन करके हानि के कारणों को ज्ञात कर सकता है। तत्पश्चात् वह हानि दूर करने तथा व्यवसाय को लाभ की स्थिति में पहुंचाने के लिए आवश्यक तथा उचित कदम उठा सकता है।
आर्थिक स्थिति का ज्ञान
लेखाकर्म के अन्तर्गत प्रत्येक वर्ष वित्तीय स्थिति ज्ञात करने हेतु आर्थिक चिट्ठा (Balance Sheet) तैयार किया जाता है जिसके द्वारा व्यावसायी को अपनी सम्पत्तियों तथा दायित्वों का समुचित ज्ञान हो जाता है। व्यवसायी को अपने लेखों से वर्ष के अन्त में अदत्त व पूर्वदत्त व्यय तथा उपार्जित व अनुपार्जित आय की भी जानकारी प्राप्त होती है।
गबन, छल-कपट, अशुद्धियों आदि की जानकारी
पुस्तपालन तथा लेखाकर्म की सहायता से व्यवसायी को व्यवसाय में होने वाले छल-कपट, गवन, त्रुटियों आदि की भी जानकारी प्राप्त हो जाती है।
भावी योजनाएँ बनाने में सहायक
अपने लेखों का अध्ययन करके कोई व्यवसायी यह जान सकता है कि उसे भविष्य के लिए कितना तथा कैसा माल तैयार करके रखना चाहिए, भविष्य में उसे कितनी पूँजी की आवश्यकता पड़ सकती है आदि।
कर राशि का ज्ञान
व्यवसायियों को आयकर, बिक्रीकर, सीमा शुल्क आदि कई प्रकार के करों का भुगतान करना होता है। नियमानुसार रखे गए लेखों की सहायता से विभिन्न प्रकार के करो की राशि का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है।
व्यावसायिक कार्यक्षमता का ज्ञान
पुस्तपालन द्वारा कई वर्षों के व्यावसायिक परिणामों सम्बन्धी ऑकड़ो का तुलनात्मक अध्ययन करके व्यवसाय की क्षमता तथा लाभदायकता को ज्ञात किया जा सकता है।
वैधानिक आवश्यकता की पूर्ति
व्यापारिक संस्थाओं के लिए पुस्तपालन की उचित पद्धति को अपनाना कानूनी रूप से अनिवार्य है। अतः वैधानिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु भी इसे अपनाया जाता है। दोषपूर्ण लेखों को कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होती।
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