शारीरिक विकास: शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था

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शारीरिक विकास: शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था

Table of Contents

शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था में शारीरिक विकास

शारीरिक विकास (Physical Development)

शारीरिक विकास: मनुष्य मनो शारीरिक (Psycho Physical) प्राणी है। जन्म के समय वह शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से अविकसित होता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास होता जाता है। शारीरिक विकास तब तक होता रहता है जब तक कि शरीर वयस्क नहीं हो जाता है। सोरेन्सन ( Sorenson) के अनुसार – “नवजात शिशु को शरीर तब तक अभिवृद्धि तथा विकास करता है जब तक यह एक वयस्क शरीर नहीं हो जाता है”

शैशवावस्था में शारीरिक विकास

शिशु का शारीरिक विकास जन्म के पूर्व गर्भावस्था से ही आरम्भ हो जाता है। इस अवधि में माता के खान-पान और स्वास्थ्य का शिशु पर प्रभाव पड़ता है। 

शैशवावस्था में विकास के दो चरण होते हैं –

  1. जन्म से तीन वर्ष की आयु तक।
  2. तीन वर्ष की आयु से छः वर्ष की आयु तक 

प्रथम तीन वर्षों में शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है। इस अवधि में शिशु का शारीरिक विकास निम्न प्रकार होता है। लड़कियों की माँसपेशियाँ लड़कों की तुलना में पहले विकसित हो जाती हैं।

1. शैशवावस्था में आकार (Size) 

जन्म के समय शिशु की लम्बाई लगभग 20 इंच होती है। लड़कियाँ लड़कों से आधी इंच छोटी होती हैं। प्रथम वर्ष में शिशु की लम्बाई लगभग 27 या 28 इंच, दूसरे वर्ष में 31 या 33 इंच और छः वर्ष की उम्र तक 40 या 44 इंच हो जाती है।

2. शैशवावस्था में भार (Weight)

नवजात शिशु का भार 6 पौण्ड होता है। प्रथम 6 माह में शिशु का भार दो गुना और एक वर्ष में तीन गुना हो जाता है। तीन वर्ष में लगभग 20 या 25 पौण्ड और छठें वर्ष तक 40 पौण्ड हो जाता है।

3. शैशवावस्था में माँसपेशियाँ (Muscles)

शिशु की माँसपेशियों का भार उसके शरीर के कुल वजन का लगभग 24% होता है। धीरे-धीरे यह भार बढ़ता है। उसकी भुजाओं का विकास तेज गति से होता है। प्रथम दो वर्ष में भुजाएं दो गुनी और टांगे लगभग डेढ़ गुनी हो जाती है। छः वर्ष की आयु तक उसकी मांसपेशियों में लचीलापन होता है।

4. शैशवावस्था में हड्डियाँ (Bones)

नवजात शिशु की हड्डियाँ छोटी, मुलायम और लचीली होती हैं। इनकी कुल संख्या 270 होती है। हड्डियाँ कैल्शियम, फास्फोरस तथा अन्य खनिज पदार्थों से मजबूत होती जाती है। इसे अस्थिकरण प्रक्रिया (Ossification) कहतें हैं। लड़कियों का अस्थिकरण लड़कों की अपेक्षा शीघ्र होता है।

5. शैशवावस्था में दाँत (Teeth)

जन्म के बाद सातवें माह में दाँत निकलना आरम्भ होता है। ये दाँत अस्थायी होते हैं। इन्हें दूध के दांत कहतें हैं। एक वर्ष की उम्र तक इनकी संख्या आठ हो जाती है। लगभग चार वर्ष की उम्र तक दूध के सभी दांत निकल आतें हैं। इसके बाद ये दांत गिर जातें हैं और पांचवे वर्ष की आयु से स्थायी दांत निकलने लगते हैं।

6. शैशवावस्था में सिर व मस्तिष्क (Scull and Brain)

नवजात शिशु का सिर शरीर की अपेक्षा बड़ा होता है। जन्म के समय सिर की लम्बाई उसके शरीर की 1/4 होती है। प्रथम दो वर्ष में सिर बहुत तेजी से बढ़ता है। उसके बाद विकास की गति मन्द पड़ जाती है। जन्म के समय मस्तिष्क का भार लगभग 350 ग्राम होता है। छः वर्ष की आयु तक यह बढ़कर 1260 ग्राम हो जाता है।

7. शैशवावस्था में आन्तरिक अंगों का विकास (Development of Internal Organs)

जन्म के पश्चात् आंतरिक अंगों का विकास होता है। इसमें पाचन अंग, फेफड़ा, माँसपेशियाँ, स्नायुमण्डल, रक्तसंचार अंग, उत्पादक अंग एवं ग्रन्थियों का विकास होता है।

बाल्यावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Childhood) 

बाल्यावस्था में 6 से 9 वर्ष तक शारीरिक विकास तेजी से होता है एवं 9 से 12 वर्ष तक यही विकास दृढ़ता को प्राप्त कर लेता है। 

बाल्यावस्था में शारीरिक विकास को  निम्न तरिके से सामाझा जा सकता है –

1. बाल्यावस्था में भार (Weight) 

बाल्यावस्था में 12 वर्ष के अन्त तक भार 80 से 95 पौण्ड हो जाता है। लड़कियों का वजन लड़कों से अधिक होता है, इसलिए उनकी किशोरावस्था शीघ्र आरम्भ हो जाती है।

2. बाल्यावस्था में आकार (Size)

बाल्यावस्था में लम्बाई में मन्द गति से वृद्धि होती है। लड़कियों की लम्बाई लड़कों से अधिक तेजी से बढाती है। इसके साथ-साथ लम्बाई पर वंशानुक्रम का भी प्रभाव पड़ता है।

3. बाल्यावस्था में हड्डियाँ (Bones)

बाल्यावस्था में शुरूआत के 4-5 वर्षों में हड्डियों की वृद्धि होती है और 10-12 वर्ष की आयु में हड्डियों का अस्थिकरण होता हैं लगभग 6 वर्ष की आयु में हड्डियों में कड़ापन आने लगता है। लड़कियों का अस्थिकरण एक साल पहले आरम्भ हो जाता है।

4. बाल्यावस्था में माँसपेशियाँ (Muscles)

बालक की माँसपेशियों का भार 8 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उसके कुल भार का 27 प्रतिशत हो जाता हैं। शारीरिक परिवर्तन पर इन ग्रन्थियों के स्राव का बहुत प्रभाव पड़ता है। 

5. बाल्यावस्था में सिर व मस्तिष्क (Scull and Brain)

बाल्यावस्था में सिर के आकार में परिवर्तन होता रहता है किन्तु अन्य अंगों के अनुपात में सिर बड़ा होता है। बाल्यावस्था में मस्तिष्क का आकार व भार लगभग पूर्ण विकास हो जाता है। 

6. बाल्यावस्था में दाँत (Teeth)

6 साल की उम्र में दूध के दाँत गिरने लगते हैं और बारह-तेरह वर्ष तक स्थायी दाँत निकल आते हैं और दाँतों की संख्या 27-28 होती है। दाँतों के निकल आने से मुखाकृति में परिवर्तन परिलक्षित होता है। बचपन का भोलापन समाप्त हो जाता है।

7. बाल्यावस्था में  शारीरिक गति का नियंत्रण (Control Over Physical Movement)

बाल्यावस्था में बालक बहुत सक्रिय रहता है। उसके लगभग सभी अंगों का विकास हो जाता है, परिणामस्वरूप वह शारीरिक अवयवों, शारीरिक शक्तियों एवं गति पर नियंत्रण करना सीख लेता है।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Adolescence) 

किशोरावस्था में लड़कों एवं लड़कियों का शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है। लड़कियों में तीव्रतम वृद्धि का समय ग्यारह से तेरह साल की उम्र तथा लड़कों में चौदह से पन्द्रह साल की उम्र होती है। इस अवधि में शारीरिक विकास में निम्न परिवर्तन होते हैं – 

1. किशोरावस्था में भार (Weight)

किशोरावस्था में लड़कों का वजन लड़कियों से ज्यादा होता है। इस आयु के अन्त में लड़कों का वजन लड़कियों की तुलना में 25 पौण्ड अधिक होता है।

2. किशोरावस्था में लम्बाई (Length)

इस अवस्था में लम्बाई तीव्र गति से बढ़ती है। लड़कियों की लम्बाई लगभग सोलह साल तक एवं लड़कों की लम्बाई अठारह साल तक तथा उसके बाद भी बढ़ती रहती है। लगभग चौदह वर्ष की उम्र में वे अपनी वयस्क ऊँचाई का 90 प्रतिशत प्राप्त कर लेते हैं।

3. किशोरावस्था में हड्डियाँ (Bones)

इस अवस्था में हड्डियों में लचीलापन नहीं रह जाता, वे कठोर हो जाती है। अस्थिकरण प्रक्रिया पूरी हो जाती है।

4. किशोरावस्था में सिर व मस्तिष्क (Scull and Brain) 

सिर व मस्तिष्क की अधिकतम वृद्धि बाल्यावस्था में होती है, किशोरावस्था में भी वृद्धि जारी रहती है। पन्द्रह या सोलह साल में सिर का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है। मस्तिष्क का भार 1200 से 1400 ग्राम तक होता है।

5. किशोरावस्था में अन्य अंगों का विकास (Development of Other Body Organs)

माँसपेशियों का विकास किशोरावस्था में तीव्र गति से होता है। माँसपेशियों के गठन में दृढ़ता आ जाती है। शरीर के सभी अंग पुष्ट व सुडौल दिखायी देते है। किशोरों में कन्धे चौड़े हो जाते है। किशोरियों के वक्षस्थल तथा कूल्हों में परिवर्तन हो जाता है। किशोरों में दाढ़ी तथा मूँछ के प्रारम्भिक लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं। इस उम्र में प्रजनन शक्ति की सक्रियता बढ़ने के कारण उनमें वयस्कता (Youth) के लक्षण दिखायी देने लगते हैं।

6. किशोरावस्था में आवाज में परिवर्तन (Change in Voice)

थायराइड ग्रन्थि के सक्रिय हो जाने के कारण किशोरों की आवाज में भारीपन आ जाता है, जबकि किशोरियों की आवाज में मृदुलता आ जाती है।

7. किशोरावस्था में विभिन्न स्त्राव ग्रन्थियों का प्रभाव (Effect of Different Secreting Glands)

शरीर रचना-विशेषज्ञों के अनुसार किशोरावस्था में परिवर्तनों का आधार ग्रन्थिया होती हैं। इन ग्रन्थियों में गलग्रन्थि (Thyroid) उप- गलग्रन्थि (Parathyoroid), उपवृक्क ग्रन्थियाँ (Adrenal Glands), पोश – ग्रन्थियाँ (Pituitory) और प्रजनन ग्रन्थि (Internal Secretion) और कुछ बाह्य स्राव (External Secretion) होता है।

शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influence Physical Development) 

शारीरिक विकास को अनेक कारक प्रभावित करतें है, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं

1. वंशानुक्रम (Heredity)

बालक के विकास पर माता-पिता के स्वास्थ्य, शारीरिक रचना एवं पूर्वजों के गुण-दोषों का प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ माता-पिता की संतान प्रायः स्वस्थ होती हैं। रोगी तथा निर्बल माता-पिता की संतान प्रायः रोगी और निर्बल होती है।

2. वातावरण (Environment)

बालक के विकास में वातावरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शुद्ध वायु पर्याप्त धूप तथा स्वच्छ वातावरण मिलने पर बालक का विकास उचित ढंग से होता है। इसके विपरीत प्रतिकूल वातावरण में बालक का विकास उचित ढंग से नहीं हो पाता।

3. भोजन (Diet)

बालक का समुचित विकास पौष्टिक एवं संतुलित आहार पर निर्भर करता है। सोरेन्सन के अनुसार – “पौष्टिक भोजन थकान का प्रबल शत्रु और शारीरिक विकास का परम मित्र है।” 

4. परिवार की स्थिति (Family Status)

परिवार की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति का भी बालक के विकास पर प्रभाव पड़ता है। परिवार के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज एवं सामाजिक प्रथाओं का प्रभाव बालक के विकास पर पड़ता है।

5. विश्राम और निद्रा (Rest and Sleep)

थकान दूर करने के लिए विश्राम और निद्रा आवश्यक है। थकान शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है और विश्राम तथा निद्रा थकान को दूर करके विकास का अवसर प्रस्तुत करतें हैं। शैशवावस्था में बालक को निद्रा की अधिक जरूरत पड़ती है। बाल्यावस्था में लगभग दस घण्टे और किशोरावस्था में लगभग आठ घण्टे सोना चाहिए।

6. व्यायाम एवं खेल (Exercise and Play) 

व्यायाम और खेल का बालक के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए बालकों को व्यायाम और खेल की सुविधा देनी चाहिए। छोटा शिशु अपने हाथ व पैर को चलाकर व्यायाम कर लेता है परन्तु बालकों तथा किशोरों के लिए खुली हवा में खेलने और व्यायाम करने की व्यवस्था करनी चाहिए।

7. स्नेह व सहानुभूति (Sympathy and Affection)

माता-पिता एवं अध्यापक के व्यवहार का बालक के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है। माता-पिता के स्नेह से वंचित बालक दुःखी रहने लगता है, फलस्वरूप उसका संतुलित विकास नहीं हो पाता, अतः बालक के संतुलित विकास के लिए स्नेह व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

निष्कर्ष

अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि शारीरिक विकास मानव-जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है। माता-पिता एवं गुरूजन के लिए विभिन्न आयु में होने वाले परिवर्तनों एवं उनको प्रभावित करने वाले कारकों का ज्ञान होना आवश्यक है। व्यक्ति की शारीरिक रचना उसके सम्पूर्ण व्यवहार को प्रभावित करती है.

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