
प्रश्नीकरण कौशल
शिक्षण में प्रश्नोत्तर कौशल की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है, इसके माध्य से ही शिक्षक अपने द्वारा लिये गये ज्ञान तथा छात्रों के पूर्व ज्ञान तथा उनकी आधार स्वरूप जानकारी का पता लगाता है। प्रश्नीकरण के सम्बन्ध में एक स्थान पर ‘रेमण्ड’ ने लिखा है– किसी भी अध्यापक का शिक्षण कैसा है यह उसके द्वारा की जाने वाली प्रश्न- प्रक्रिया पर निर्भर करता है। इसके माध्यम से ही वह छात्रों को प्रेरित करता है तथा छात्र भी उत्साहित होकर शिक्षण प्रक्रिया से अपने को अलग नहीं रख पाते हैं।
प्रश्नीकरण कौशल का अर्थ
प्रश्नीकरण क्या है? इसके विषय में अनेक विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं जो इस प्रकार हैं –
कोलविन (Colwin) ने प्रश्नीकरण के विषय में लिखा है “प्रश्न सबसे अच्छा उत्तेजक है और यह शिक्षक को शीघ्र उपलब्ध हो जाता है।” अर्थात् प्रश्न के माध्यम से छात्रों को ज्ञान आसानी से प्रदान किया जाता है तथा शिक्षक छात्रों को अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
रायबर्न (Rayburn) के अनुसार “शिक्षण में प्रश्न का बहुत बड़ा महत्त्व है यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी सामान्य पाठ या विशिष्ट शिक्षण में किसी शिक्षक की सफलता उसके भलीभाँति प्रश्न पूछने की क्षमता पर या योग्यता पर निर्भर करते हैं।”
रेमण्ड (Raymond) के अनुसार “उत्तम प्रश्न करने की शैली प्राप्त करना एक नये शिक्षक की मुख्य आकांक्षाओं में से एक होनी चाहिए। अतः एक अच्छा प्रश्नकर्त्ता एक अच्छा शिक्षक होता है।”
पार्कर का कहना है कि “प्रश्न आदत कौशल स्तर (Habit Skill Level) के बाहर समस्त शैक्षिक क्रिया की कुंजी है।”
रमन बिहारी ने कहा है कि “यदि हम यह कहें कि बिना प्रश्नोत्तर के शिक्षण नहीं हो सकता इसमें भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जब बच्चा स्वयं प्रश्न करके सीखता है तब भी उसे मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार के प्रश्न उठते हैं। उन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त किये बिना वह आगे नहीं बढ़ पाता है। जबकि कक्षा-कक्ष में शिक्षण के समय कदम-कदम पर प्रश्नों की आवश्यकता है इसकी अनुपस्थिति शिक्षण नहीं है।”
अर्थात् प्रश्नीकरण एक ऐसे परीक्षण कौशल हैं जिससे शिक्षण को प्रभावी तथा छात्रों को स्थायी ज्ञान प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है। अधिगम को अधिक प्रभावी बनाते हुए भी प्रश्नीकरण कौशल अपनी अहम् भूमिका निभाता है।
प्रश्नों का प्रकार (Types of Question)
प्रश्नों का विवेचन करने पर प्राप्त होता है कि प्रश्न दो प्रकार के होते हैं –
(1) शिक्षक से सम्बन्धित
(2) परीक्षण सम्बन्धित
शिक्षण से सम्बन्धित प्रश्नों के माध्यम से शिक्षक छात्रों को जानकारी प्राप्त करते हैं तथा छात्रों को ज्ञान प्रदान किया जाता है अर्थात् पाठ पढ़ाते समय छात्रों में चिन्तन, तुलना, प्रेरणा का इसमें प्रयोग होता है तथा द्वितीय परीक्षण प्रश्न इसके माध्यम से छात्रों ने क्या सीखा है तथा शिक्षक ने कैसा पढ़ाया इसकी जानकारी होती है अर्थात् इसके माध्यम से अध्यापक शिक्षण का मूल्यांकन होता है।
रिस्क के अनुसार – रिस्क ने मानसिक क्रिया को आधार मानकर शिक्षण प्रश्न दो प्रकार के बताये हैं-
- स्मृत्यात्मक प्रश्न (Memory Question)
- विचारात्मक प्रश्न (Thought Question)
कक्षा में शिक्षक जब शिक्षण कार्य करता है तो उसे परिस्थितियों के अनुसार वह प्रश्न पूछता है इसलिए उसे विभिन्न प्रकार के प्रश्न करने पड़ते हैं। कक्षा कक्ष के व्यवहार को ध्यान में रखकर प्रश्नों को निम्न भागों में विभाजित किया गया है.
- प्रस्तावना प्रश्न (Introducing Question)
- विकासात्मक प्रश्न (Developing Question)
- विचारात्मक प्रश्न (Thought Provoking Question)
- समस्या प्रश्न (Problem Question)
- बोध प्रश्न (Comprehension Question)
- पुनरावृत्ति प्रश्न (Recapitulatory Question)
- मूल्यांकन प्रश्न (Evaluation Question)
उपरोक्त प्रश्नों के भी अन्य प्रकार पाये जाते हैं। उनका विस्तृत ज्ञान निम्नलिखित चित्र द्वारा स्पष्ट हो जायेगा-

प्रश्नों का प्रयोग एवं उद्देश्य
- शिक्षक छात्रों को नया ज्ञान देता है तथा पूर्वज्ञान की जानकारी प्राप्त करता है।
- शिक्षण में शिक्षण विधि का निर्धारण, यह निर्धारण भी प्रश्नों के माध्यम से किया जाता है।
- छात्रों का छात्र ध्यान पाठ्यवस्तु पर केन्द्रित करने हेतु प्रश्नों का प्रयोग किया जाता है।
- प्रश्न के द्वारा शिक्षक को अपनी कमियों का ज्ञान होता है। एक नई दिशा मिलती है जिससे वह अपने शिक्षण में परिवर्तन ला सकेँ।
- प्रश्नों द्वारा छात्रों की कमियों का पता लगाया जाता है तथा उनको दूर करने का प्रयास किया जाता है।
- छात्रों की रुचियों का ज्ञान भी प्रश्नों द्वारा पताया लगाया जाता है।
- प्रश्न छात्रों को क्रियाशील बनाते हैं।
- प्रश्नों के द्वारा छात्रों का मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक विकास में सहायता प्रदान करते हैं।
- प्रश्नों के द्वारा पाठ मूल्यांकन एवं पुनरावृत्ति की जाती है।
- प्रश्नों के द्वारा छात्रों में प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वे परिश्रम करते हैं तथा अध्ययन की ओर उन्मुख होते हैं।
अच्छे प्रश्न की विशेषताएँ
प्रश्नीकरण कौशल शिक्षण की केन्द्र बिन्दु है। इसके प्रयोग तथा संरचना पर शिक्षण निर्भर करता है इसलिए बनाते समय हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वे उत्तम, सरल, उपयुक्त एवं अशुद्धता रहित होने चाहिए। अच्छे प्रश्नों के निम्न विशेष तथ्य होते हैं। इनको ध्यान में रखना चाहिए-
- प्रश्न का आकार न तो अधिक छोटा हो और न अधिक बड़ा, क्योंकि अधिक बड़ा प्रश्न छात्रों की समझ नहीं आता तथा याद रखने में परेशानी होती है।
- प्रश्न की भाषा एक ही होनी चाहिए।
- एक प्रश्न में एक ही प्रश्न पूछना उपयुक्त है दो या इससे अधिक प्रश्न पूछने से भ्रमित होने की स्थिति बनी रहती है।
- प्रश्न की भाषा, सहज तथा समझ में आने योग्य होनी चाहिए।
- प्रश्न सार्थक होना चाहिए अर्थात् जिसका एक निश्चित अर्थ और अन्तर हो।
- प्रश्न प्रेरणात्मक तथा खोजपूर्ण होने चाहिए जिससे बालक अपने मस्तिष्क की पूर्ण कसरत करके प्रश्न का उत्तर दे सके।
- प्रश्न छात्रों की आयु – आयु और सम्बन्धित विषय के आधार पर हों।
- प्रश्न वह उत्तम माने जाते हैं जिसके उत्तर संक्षिप्त एवं केन्द्रित (To the Point) होनी चाहिए।
- प्रश्न की रचना करते समय यह विशेष ध्यान रखना चाहिए कि प्रश्नों में तारतम्यता (Linking) होनी चाहिए। प्रथम प्रश्न का दूसरे प्रश्न से तथा दूसरे प्रश्न का तीसरे प्रश्न से सम्बन्ध हो तथा उत्तर मिलने में आसानी हो।
- प्रश्नों का निर्माण इस प्रकार होना चाहिए जिससे बच्चों को तर्क एवं चिन्तन का विकास भी हो सके।
उत्तर निकलवाने की विधि
उत्तर निकलवाने के लिए एक शिक्षक को सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए। जिससे छात्र आसानी से जवाब दें। एक शिक्षक को निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
- शिक्षक प्रश्न का उत्तर लेने के लिए स्पष्ट नाम से छात्र को बुलाये जाति, वर्ग, काली, पेन्ट, सफेद शर्ट आदि करके सम्बोधन नहीं करना चाहिए।
- छात्रों से पूछते समय शिक्षक को अपने हाव-भाव कुल प्रश्न के उत्तर के उपयुक्त रखने चाहिए।
- एक समय में एक ही छात्र से पूछना चाहिए जिससे कक्षा में अनुशासन बना रहता है।
- सही उत्तर मिलने पर शिक्षक को चाहिए कि वह सकारात्मक पुनर्वलन प्रदान किया जाए।
- शिक्षक द्वारा उस छात्र को नकारात्मक पुनर्वलन देना चाहिए जो गलत उत्तर देते हैं।
- शिक्षक को प्रश्न का उत्तर धैर्यपूर्वक ढंग से सुनना चाहिए जिससे छात्र को ज्ञान की वास्तविक जानकारी प्राप्त हो।
- शिक्षक को ऐसे छात्रों को प्रेरित करना चाहिए जो प्रश्न-उत्तर देने में झिझकते हैं या उत्तर आते हुए भी कक्षा में नहीं बोल पाते हैं।
- शिक्षकों को चाहिए कि प्रश्नों का उत्तर निश्चित वाक्य के रूप में लेना चाहिए। एक शब्द या टूटा-फूटा उत्तर लेने से छात्रों में मानसिक संकुचन हो जाता है।
- शिक्षक को चाहिए जिन छात्रों से प्रश्न का उत्तर नहीं आता है ऐसे छात्रों से पूछें और उत्तर निकलवाने का प्रयास करें।
- जो छात्र बिल्कुल उत्तर नहीं दे पा रहे हैं उन छात्रों से सही उत्तर कक्षा में खड़े करके दुहराना चाहिए।
प्रश्नीकरण कौशल के घटक
प्रश्नीकरण के घटकों को क्रमशः तीन भागों में विभक्त किया है तथा उनके अन्य पदों में बाँटा गया है-
1. प्रश्नों की संरचना
- व्यावहारिक शुद्धता
- प्रासंगिकता
- संक्षिप्तता
- स्पष्टता
- प्रश्नों का उत्तर
2. प्रस्तुतीकरण
- प्रश्न पूछने की गति
- शिक्षक की वाणी
- शिक्षक द्वारा प्रश्न दोहराना
- छात्र द्वारा उत्तर दोहराना
3. वितरण
- उत्सुक छात्रों से प्रश्न पूछना
- अनुत्सुक छात्रों से प्रश्न पूछना
- कक्षा-कक्ष के विभिन्न भागों से प्रश्न पूछना
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