शिक्षण सहायक सामग्री (Teaching Aids)

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शिक्षण सहायक सामग्री का अर्थ, शिक्षण सहायक सामग्री की परिभाषाएँ, शिक्षण सामग्री का महत्त्व एवं आवश्यकता, शिक्षण सहायक सामग्री के उद्देश्य, शिक्षण सहायक सामग्री की विशेषताएँ, शिक्षण सहायक सामग्री का वर्गीकरण, प्रकृति से प्राप्त कुछ सहायक सामग्री आदि के बारे में हम इस पोस्ट में पढ़ेंगे।

शिक्षण सहायक सामग्री
शिक्षण सहायक सामग्री

Table of Contents

शिक्षण सहायक सामग्री

शिक्षण सहायक सामग्री का अर्थ (Meaning of Teaching Aids)

शिक्षण सामग्री का तात्पर्य शिक्षण के उन साधनों से है जिनके प्रयोग से बालकों की ज्ञानेन्द्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं और वे पाठ के सूक्ष्म तथा कठिन भावों को सरलतापूर्वक समझ जाते हैं स्मरण रहे कि जिस समय शिक्षण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न विधियाँ तथा प्रविधियाँ असफल होती दिखाई देने लगती हैं तो ऐसी स्थिति में शिक्षण सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इस दृष्टि से शिक्षण सामग्री न केवल शिक्षण को ही अपितु शिक्षण की प्रविधियों अथवा युक्तियों को भी प्रभावशाली बनाने में रामबाण का कार्य करती है। 

ई. सी. डेण्टा के अनुसार ” शिक्षण सामग्री का अर्थ उस समस्त सामग्री से है जो कक्षा में अथवा अन्य शिक्षण परिस्थिति में लिखित अथवा बोली हुई पाठ्य सामग्री में सहायता देती है।” 

शिक्षण सहायक सामग्री की परिभाषाएँ

जॉन के अनुसार

“समस्त श्रव्य दृश्य साधनों को शैक्षिक कार्यक्रम के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सहायक सामग्री या विधियाँ या साधन के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। श्रव्य-दृश्य उपकरण स्वयं साध्य नहीं हैं, वरन् सिखाने के साधन हैं।”

एडगर डेल के अनुसार

“श्रव्य दृश्य ऐसे साधन हैं, जिनके शिक्षण-प्रशिक्षण परिस्थिति में अनुप्रयोग से विभिन्न व्यक्तियों तथा समूहों के मध्य विचारों का सम्प्रेषण किया जाता है। इन्हें बहुज्ञानेन्द्रिय सामग्री भी कहा जाता है।” 

मैकनॉन तथा रॉबर्ट्स के शब्दों में

‘श्रव्य-दृश्य सामग्री ऐसे सहायक साधन हैं, जिनके द्वारा शिक्षक एक से अधिक ज्ञानेन्द्रियों का दोहन कर संकल्पनाओं को स्पष्ट स्थापित तथा उनमें सह- सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करता है।”

शिक्षण सहायक सामग्री का महत्त्व एवं आवश्यकता (Importance and Need of Teaching Aids) 

शिक्षण सामग्री के अनेक कार्य हैं तथा सभी बालकों की शिक्षा के लिए उपयोगी है। छोटे बालकों की शिक्षा में इसके महत्त्व को प्रत्येक शिक्षाशास्त्री ने एकमत होकर स्वीकार किया है। निम्नलिखित बिन्दुओं में इसके महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है- 

प्रेरणादायी श्रव्य दृश्य साधन

बालकों का ध्यान आकर्षित करके ज्ञान को स्थूल रूप में प्रस्तुत करते हैं। इससे बालकों को सीखने की क्रिया में प्रेरणा एवं उत्सुकता मिलती हैं। 

क्रियागत अवसर की सुलभता

शिक्षण सामग्री के प्रयोग से बालकों को नाना प्रकार की क्रियाएँ करने के अवसर मिलते हैं। वे उसमें बोलते चालते हैं, प्रश्न पूछते हैं तथा वाद-विवाद करते हैं। इसमें उनकी विभिन्न इन्द्रियाँ उत्तेजित हो जाती हैं जिनके परिणामस्वरूप उनकी पाठ में रुचि बनी रहती है और वे खेलते-खेलते कठिन से कठिन बातों को बिना किसी कठिनाई के स्वाभाविक रूप से सीख जाते हैं।

स्पष्टीकरण में सहायक

शिक्षण सामग्री के प्रयोग से बालकों को कठिन- से कठिन पाठ्य सामग्री का स्पष्टीकरण हो जाता है। इसका एकमात्र कारण यह है कि बालक जो कुछ सुनते हैं उसी को आँख से देख भी लेते हैं। 

अर्थयुक्त अनुभव की प्राप्ति

शिक्षण सामग्री द्वारा बालकों को पाठ स्थूल रूप से पढ़ाया जाता है। प्रत्येक बालक वस्तु को देखकर छूकर तथा पूछकर हर प्रकार ले ठीक-ठाक समझने का प्रयास करता है। इससे पाठ सरल, रोचक तथा मनोरंजक बन जाता है और सभी बालक ज्ञान को प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण कर लेते हैं।

रटने को कम करना

शिक्षण सामग्री के प्रयोग से बालक पाठ के विकास में रुचि लेते हैं तथा ज्ञान स्वयं क्रिया करके ग्रहण करते हैं। इससे सीखा हुआ ज्ञान निश्चित और स्थायी बन जाता है और उन्हें किसी चीज को रटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

शब्दावली में वृद्धि

शिक्षण सामग्री के द्वारा बालकों की शब्दावली में वृद्धि होती है । इसका कारण यह है कि रेडियो, टेलीफोन तथा चलचित्र का प्रयोग करते समय वे नये-नये शब्द सुनते हैं तथा ग्रहण करते हैं।

शिक्षण में कुशलता

शिक्षण सामग्री का प्रयोग करने से शिक्षण में कुशलता आती है । साथ ही शिक्षण और अधिक प्रभावशाली बन जाता है । दूसरे शब्दों में, जिन सूक्ष्म बातों तथा कठिन भावों को बालक चॉक और ‘टाक’ (Talk) की सहायता से नहीं समझ सकते, उन्हें वे सहायक सामग्री के प्रयोग से सरलतापूर्वक समझ सकते हैं।

प्रत्यक्ष अनुभव

श्रव्य दृश्य सामग्री द्वारा शिक्षार्थियों को प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किया जाता है। जिस पाठ्यवस्तु या प्रक्रिया को हम अनुभव नहीं कर सकते उनको चित्र हैं या फिल्म की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।

संग्रहण क्षमता

श्रव्य-दृश्य साधनों द्वारा पूर्व ज्ञान को सुरक्षित रख सकते हैं। किसी भी घटना की प्रक्रिया को फिल्म में संग्रहित कर, शैक्षिक कार्यक्रमों को वीडियो टेप अथवा ऑडियो टेप पर सुरक्षित रख सकते हैं। इन कार्यक्रमों का शिक्षण में उपयोग किया जा सकता है।

रुचिकर साधन

श्रव्य दृश्य सामग्री एक रुचिकर साधन है। शिक्षण सामग्री का उपयोग करके शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर बनाया जा सकता है। इससे शिक्षार्थियों में सक्रियता आती है और अधिगम स्थायी होता है। इनका उपयोग शिक्षण की एकरसता को दूर करता है।

अमूर्त व मूर्त रूप से प्रस्तुतीकरण

विभिन्न विषयों में कई संकल्पनाएँ सूक्ष्म स्तर में अमूर्त रूप में होती हैं। इन संकल्पनाओं को मूर्त रूप में प्रस्तुत करने से शिक्षार्थियों द्वारा प्राप्त ज्ञान स्पष्ट एवं स्थायी होगा जिसे शिक्षार्थी अधिक समय तक याद रख सकते हैं।

मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित

श्रव्य दृश्य साधन कुछ मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों; जैसे प्रत्यक्षीकरण का सिद्धान्त, रुचि का सिद्धान्त, व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धान्त पर आधारित हैं। श्रव्य दृश्य साधन शिक्षार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करते है। शिक्षार्थी एक-दूसरे से मानसिक क्षमता, अध्ययन गति, रुवि आदि की दृष्टि से भिन्न होते हैं। शिक्षकों के समझाने पर विषय-वस्तु स्पष्ट हो जाती है।

वैज्ञानिक अभिवृत्ति का विकास

किसी घटना के घटित होने के कारण का तर्क देना वैज्ञानिक अभिवृत्ति कहलाता है। श्रव्य दृश्य साधनों द्वारा अमूर्त चित्तन व मूर्त चिन्तन का विकास होता है। शिक्षार्थियों की सक्रियता बढ़ती है। अतः अधिगम स्थायी होता है अतः ये सभी शिक्षार्थियों में अभिवृत्ति के विकास में सहायक होती हैं।

सक्रियता

शिक्षार्थी जब स्वयं करके देखते हैं, तो पाठ्य पुस्तक अधिक स्पष्ट हो जाती है। श्रव्य दृश्य साधनों के कुछ सिद्धान्तों पर आधारित होने भी इसमें शिक्षार्थियों की सहभागिता भी हो सकती है। जैसे किसी वस्तु का मॉडल में शिक्षार्थियों की सहभागिता हो सकती हैं। इस प्रकार की गतिविधियों से होकर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

शिक्षण सहायक सामग्री के उद्देश्य (Aims of Teaching Material Aids)

कोठारी आयोग के अनुसार “शिक्षण के स्तर को ऊँचा करने के लिए स्कूल में सहायक सामग्री का होना अत्यन्त आवश्यक है। निःसन्देह इससे देश के शिक्षा क्षेत्र में क्रान्ति पैदा हो सकती है।”

शिक्षण को प्रभावशाली बनाने एवं शिक्षार्थी के कौशल में विकास के लिए शिक्षण सामग्री प्रयुक्त की जाती है। इनके निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • अवकाश के समय का सदुपयोग करना।
  • शिक्षार्थियों को अधिक क्रियाशील बनाना ।
  • छात्राध्यापकों को सहायक सामग्री के निर्माण हेतु प्रोत्साहित करना।
  • रचना एवं आत्म-प्रदर्शन की प्रवृत्तियों के प्रकाशन के अवसर प्रदान करना। 
  • अभिरुचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना। 
  • अमूर्त पदार्थ को मूर्त रूप देना। 
  • बालकों को मानसिक रूप से नये ज्ञान की प्राप्ति हेतु तैयार करना और प्रेरणा देना
  • मन्द बुद्धि बालकों को योग्यतानुसार शिक्षा देना।
  • बालकों का ध्यान पाठ की ओर केन्द्रित करना तथा उनकी निरीक्षण शक्ति का विकास करना।
  • पाठ्य सामग्री को स्पष्ट सरल तथा बोधगम्य बनाना।

शिक्षण सहायक सामग्री की विशेषताएँ (Characteristics of Teaching Aids)

शिक्षण में उपयोगी सहायक सामग्री की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं— 

  • सहायक सामग्री स्थायी रूप से सीखने एवं समझने में सहायक है।
  • यह अनुभवों के द्वारा ज्ञान प्रदान करती है। 
  • छात्र अधिक सक्रिय रहते हैं और पाठ को सरलता से याद कर सकते हैं।
  • इससे वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास होता है।
  • भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करती है। 
  • विभिन्न प्रकार की विधाओं का प्रयोग करती है।
  • शिक्षक को अच्छे शिक्षण में सहायता देती है।
  • वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर मिलता है।  
  • छात्र स्वयं कार्य करने पर अपने को अधिक योग्य एवं साधन सम्पन्न तथा आत्मनिर्भर मानने लगते हैं। 
  • यह छात्रों की कल्पना शक्ति का विकास करती है।

शिक्षण सामग्री के उपयोग करते समय सावधानियाँ

  • शिक्षण सामग्री छात्रों के अनुभव, आवश्यकता, समझ, आयु, प्रकरण तथा विषय-वस्तु की प्रकृति के अनुसार होनी चाहिए। 
  • कक्षा के अधिगम लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होनी चाहिए।
  • प्रकरण का सही स्वरूप प्रस्तुत करने वाली होनी चाहिए। 
  • छात्रों के परिवेश के अनुसार होनी चाहिए ताकि उसके माध्यम से प्रकरण के सभी बिन्दुओं का ज्ञान प्राप्त हो सके। 
  • एक वस्तु को समझाने के लिए अनावश्यक सामग्री का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • ऐसी सामग्री का चयन करना चाहिए जो छात्रों में रुचि उत्पन्न करे और उन्हें जिज्ञासु बना सके तथा प्रेरणा दे सके।
  • सामग्री जितनी देर आवश्यक है, उतनी ही देर तक प्रयोग की जानी चाहिए। 
  • सरल, सुगम तथा उपयुक्त सामग्री का हा चयन करना चाहिए।
  • शिक्षण सामग्री सही हालत में होनी चाहिए तथा शिक्षणात्मक मूल्यों से युक्त होनी चाहिए। 
  • जिस पाठ में सहायक सामग्री का प्रयोग करना हो उसके विषय में पहले से ही योजना बना ली जाए।

शिक्षण सहायक सामग्री का वर्गीकरण (Classification of Teaching Aids) 

इन्द्रियों के प्रयोग के आधार पर शिक्षण सामग्री को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. श्रव्य साधन (Audio Aids)
  2. दृश्य साधन (Visual Aids)
  3. श्रव्य दृश्य साधन (Audio Visual Aids) 

शिक्षण सामग्री के वर्गीकरण को निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है-

श्रव्य-दृश्य सामग्री
(Audio-Visual Aids)
श्रव्य साधन
(Audio Aids)
(1) रेडियो
(2) ग्रामोफोन
(3) लिंग्वाफोन
(4) टेपरिकॉर्डर
दृश्य साधन
(Visual Aids)
प्रक्षेपित दृश्य साधन
(Visual Aid Projected)
(1) शिरोपरि प्रक्षेपक (Overhead Projector)
(2) एपिडायस्कोप
(3) स्लाइड प्रोजेक्टर
(4) फिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्टर
(5) स्लाइड-कमफिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्टर
अप्रक्षेपित दृश्य साधन
(Visual Aids Non-projected)
चार्ट:
(1) ट्री चार्ट
(2) फ्लो चार्ट
(3) टेबिल चार्ट

बोर्ड:
(1) डिस्पले
(2) पेग बोर्ड
(3) हुक व लूप बोर्ड
(4) फेल्ट बोर्ड
(5) मेगनेटिक बोर्ड
(6) चॉक बोर्ड
(7) बुलेटिन बोर्ड
(8) फ्लेनल बोर्ड
(9) प्लास्टिक-ग्राफ बोर्ड

ग्राफ:
(1) दण्ड आरेख
(2) लाइन ग्राफ
(3) पाई ग्राफ

अन्य
(1) मानचित्र
(2) ग्लोब
(3) पोस्टर
(4) कार्टून
(5) संग्रहालय
(6) प्रतिमान
श्रव्य दृश्य साधन
(Audio-Visual Aids)
(1) चलचित्र
(2) दूरदर्शन
(3) ड्रामा
(4) क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन
(5) ऑडियो-वीडियो टेप

प्रकृति से प्राप्त कुछ सहायक सामग्री

पत्तियाँ

विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों की बनावट व आकार भिन्न-भिन्न होता है। विभिन्न प्रकार की पतियों को सुगमता से प्राप्त किया जा सकता है। वनस्पति विज्ञान के शिक्षण में पत्तियों को ज्ञान प्रदान करने के लिए इनका प्रयोग अधिगम सामग्री के रूप में किया जा सकता है। छात्रों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से पत्तियों को देखकर उनके अधिगम स्तर में वृद्धि होगी। छात्रों को विभिन्न प्रकार की पत्तियों को संग्रह के लिए भी प्रेरित किया जा सकता है। इस प्रकार उनकी विज्ञान विषय में रुचि जाग्रत होगी।

टहनियाँ

विभिन्न प्रकार की टहनियाँ सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं। वनस्पति विज्ञान एवं कृषि विज्ञान में जब पौधों के भागों के बारे में वर्णन किया जाता है तो टहनिओं का धन भी किया जाता है। छात्रों को विभिन्न प्रकार की निओं को दिखाकर उनके अधिगम शिक्षण स्तर को उन्नत किया जा सकता है।

जड़ें

पौधों में जड़ें अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। नहीं के द्वारा ही - पौधों का विकास होता है। पौधों की जड़ को कक्षा में छात्रों को दिखाकर जड़ के कार्य एवं स्वरूप को समझाया जा सकता है। शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में जड़ों को मूर्त रूप से दिखा सकते हैं, इससे छात्रों को विज्ञान के विषय में रूचि जाग्रत होगी। इस प्रकार प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं का सहायक शिक्षण सामग्री के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। 

बीज

प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं में बीजों का स्थान अग्रणी है। बीजों के अंकुरण द्वारा ही हमें खाद्यान्न सामग्री प्राप्त होती है। छात्रों को कक्षा में बीजों के आकार-प्रकार, गुण एवं अंकुरण क्रिया का ज्ञान दिया जा सकता है। शिक्षक छात्रों के बतायें कि बीज का अंकुरण किस प्रकार होता है इसके लिए वह छात्रों को प्रयोगात्मक विधि से इसका प्रदर्शन करके बतायें। इससे छात्रों की जिज्ञासा शान्त हो जाएगी तथा उनकी रुचि विज्ञान विषय में बढ़ेगी।

कंकड़

कंकड़ों के प्रयोग द्वारा प्राथमिक स्तर पर छात्रों को गिनती एवं पहाड़े सिखाने में किया जा सकता है। इसके छात्र जोड़, घटना सीख सकते हैं। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में छात्र इसके द्वारा गिनती पहाड़े, जोड़, घटाना आदि सुगमता से सीख - जाते हैं।

सीकें

विभिन्न प्रकार की सीकों का प्रयोग भी छात्रों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को तीव्र करता है। माचिस की सीकों अथवा अन्य प्रकार की सीकों के द्वारा छात्र रेखा, त्रिभुज, आयत, चतुर्भुज तथा वर्ग आदि की संकल्पना कर अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकता है। शिक्षण अधिगम का यह एक मनोरंजक साधन है, इसके द्वारा छात्र विभिन्न प्रकार की आकृति बनाना सीख जाते हैं।

मिट्टी

अधिगम की इस प्रक्रिया के अर्न्तगत छात्रों को विभिन्न प्रकार की मिट्टी के बारे में जानकारी दी जा सकती है। छात्रों के सम्मुख विभिन्न प्रकार की मिट्टी जैसे- दोमट मिट्टी, काली मिट्टी, रेता मिट्टी, लाल मिट्टी आदि के बारे में बताया जा सकता है तथा इन मिट्टियों से पैदा होने वाले खाद्यान्न के बारे में भी ज्ञान दिया जा सकता है। छात्रों के समक्ष विभिन्न प्रकार की मिट्टियों के नमूने देकर उनके रूप-रंग तथा गुण के बारे में बताया जा सकता है। इसके अधिगम प्रक्रिया रुचिकर हो जाएगी। 8. पत्थर पुरातत्व विज्ञान तथा भूगोल विषय की अधिगम प्रक्रिया के अर्न्तगत - पत्थरों का ज्ञान अति आवश्यक है। विभिन्न प्रकार की चट्टानों के टुकड़े तथा उनका वर्गीकरण कराकर छात्रों के ज्ञान में वृद्धि की जा सकती है। इसके द्वारा शिक्षण अधि गम प्रक्रिया को सुबोध व सरल बनाया जा सकता है।

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